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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1586
ऋषिः - सुकक्ष आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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क꣢या꣣ त्वं꣡ न꣢ ऊ꣣त्या꣡भि प्र म꣢꣯न्दसे वृषन् । क꣡या꣢ स्तो꣣तृ꣢भ्य꣣ आ꣡ भ꣢र ॥१५८६॥

स्वर सहित पद पाठ

क꣡या꣢꣯ । त्वम् । नः꣣ । ऊत्या꣢ । अ꣡भि꣢ । प्र । म꣣न्दसे । वृषन् । क꣡या꣢꣯ । स्तो꣣तृ꣡भ्यः꣢ । आ । भ꣣र ॥१५८६॥


स्वर रहित मन्त्र

कया त्वं न ऊत्याभि प्र मन्दसे वृषन् । कया स्तोतृभ्य आ भर ॥१५८६॥


स्वर रहित पद पाठ

कया । त्वम् । नः । ऊत्या । अभि । प्र । मन्दसे । वृषन् । कया । स्तोतृभ्यः । आ । भर ॥१५८६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1586
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -

(वृषन्) = हे सब सुखों की वर्षा करनेवाले प्रभो ! (त्वम्) = आप (नः) = हमें (कया ऊत्या) = अनिर्वचनीय [Indescribable] या अत्यन्त आनन्दमय रक्षण के द्वारा (अभिप्रमन्दसे) = इहलोक व परलोक में आनन्दित करते हो । प्रभु की रक्षा से सुरक्षित होकर हम ऐहलौकिक व पारलौकिक हितसाधन कर पाते हैं। हे प्रभो! (कया) = अपने उसी आनन्दप्रद रक्षण से (स्तोतृभ्यः) = अपने स्तोताओं के लिए (आभर) = जीवन-यात्रा के लिए आवश्यक धन का भरण करो। आप अपने भक्तों के योगक्षेम को चलाते ही हो। हम भक्तों को भी आप उदर-भरण के लिए व्यग्र न कीजिए । इस चिन्ता से मुक्त रहकर हम सदा आपके निर्देशों के अनुसार अपने जीवन को चलाने के प्रयत्न में लगे रहें। आपकी शरण ही सर्वोत्तम शरण है उसमें रहते हुए हम इस मन्त्र के ऋषि 'सुकक्ष' बनें । 

भावार्थ -

हम सदा प्रभु के रक्षण में विश्वास रखनेवाले आस्तिक पुरुष बनें ।

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