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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1592
ऋषिः - अनानतः पारुच्छेपिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अत्यष्टिः स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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त्व꣢ꣳ ह꣣ त्य꣡त्प꣢णी꣣नां꣡ वि꣢दो꣣ व꣢सु꣣ सं꣢ मा꣣तृ꣡भि꣢र्मर्जयसि꣣ स्व꣡ आ दम꣢꣯ ऋ꣣त꣡स्य꣢ धी꣣ति꣢भि꣣र्द꣡मे꣢ । प꣣राव꣢तो꣣ न꣢꣫ साम꣣ त꣢꣫द्यत्रा꣣ र꣡ण꣢न्ति धी꣣त꣡यः꣢ । त्रि꣣धा꣡तु꣢भि꣣र꣡रु꣢षीभि꣣र्व꣡यो꣢ दधे꣣ रो꣡च꣢मानो꣣ व꣡यो꣢ दधे ॥१५९२॥

स्वर सहित पद पाठ

त्व꣢म् । ह꣣ । त्य꣢त् । प꣣णीना꣢म् । वि꣣दः । व꣡सु꣢꣯ । सम् । मा꣣तृ꣡भिः꣢ । म꣣र्जयसि । स्वे꣢ । आ । द꣡मे꣢꣯ । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । धी꣣ति꣡भिः꣢ । द꣡मे꣢꣯ । प꣣राव꣡तः꣢ । न । सा꣡म꣢꣯ । तत् । य꣡त्र꣢꣯ । र꣡ण꣢꣯न्ति । धी꣣त꣡यः꣢ । त्रि꣣धा꣡तु꣢भिः । त्रि꣣ । धा꣡तु꣢꣯भिः । अ꣡रु꣢꣯षीभिः । व꣡यः꣢꣯ । द꣣धे । रो꣡च꣢मानः । व꣡यः꣢꣯ । द꣣धे ॥१५९२॥


स्वर रहित मन्त्र

त्वꣳ ह त्यत्पणीनां विदो वसु सं मातृभिर्मर्जयसि स्व आ दम ऋतस्य धीतिभिर्दमे । परावतो न साम तद्यत्रा रणन्ति धीतयः । त्रिधातुभिररुषीभिर्वयो दधे रोचमानो वयो दधे ॥१५९२॥


स्वर रहित पद पाठ

त्वम् । ह । त्यत् । पणीनाम् । विदः । वसु । सम् । मातृभिः । मर्जयसि । स्वे । आ । दमे । ऋतस्य । धीतिभिः । दमे । परावतः । न । साम । तत् । यत्र । रणन्ति । धीतयः । त्रिधातुभिः । त्रि । धातुभिः । अरुषीभिः । वयः । दधे । रोचमानः । वयः । दधे ॥१५९२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1592
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 2; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
Acknowledgment

पदार्थ -

(सन्मार्ग से धन ) - १. हे अनानत ! (त्वं ह) = तू निश्चय से (त्यत्) = उस (पणीनाम्) = स्तुत्य व्यवहार
वालों के (वसु) = धन को (विदः) = प्राप्त करता है, अर्थात् अनानत उत्तम मार्ग से ही धन कमाता है। गौओं से पवित्रता – २. (मातृभिः) = गौओं के द्वारा (स्वे दमे) = अपने घर में (सम् आ मर्जयसि) = सब ओर सम्यक् शुद्धि करता है। घर की पवित्रता यदि गोमय के लेपनादि से होती है तो गोदुग्ध के सेवन से शरीर की नीरोगता, मन की निर्मलता व बुद्धि की तीव्रता का सम्पादन होता है।

(सत्य)—३. घर में पवित्रता का सम्पादन (ऋतस्य) = सत्य के (धीतिभिः) = धारण से भी होता है । जहाँ सत्य व्यवहार हो वहाँ पवित्रता बनी रहती है । 'ऋत' का अभिप्राय नियम-परायणता भी है । 'समय पर सब कार्य किये जाएँ' इससे भी शरीर पवित्र बना रहता है ।

(सामोच्चारण)– ४. (दमे) = घर में (परावतो न साम) = साम कभी दूर नहीं होता, अनानत के घर में सदा सामों का उच्चारण होता है । इस घर से (तत्) = वह साम (न परावतः) = दूर नहीं होता (यत्र) = जिस साम में (धीतयः) = ध्यान करनेवाले उपासक (आरणन्ति) = प्रभु के गुणों का उच्चारण करते हैं ।

५. यह अनानत (अरुषीभिः) = न हिंसित करनेवाली (त्रिधातृभिः) = वात, पित्त व कफ़-इन तीन धातुओं से (वयः) = आयु को (दधे) = धारण करता है। (रोचमान:) = बड़ा चमकता हुआ- तेज से दीप्त होता हुआ (वयः दधे) = आयुष्य को धारण करता है । 

भावार्थ -

हमारे घरों में निम्न पाँच बातें अवश्य हों – १. उत्तम व्यवहार से कमाया हुआ धन, २. गौओं का निवास – गोदुग्ध सेवन, ३. सत्य व नियमित व्यवहार, ४. साममन्त्रों द्वारा प्रभु स्तवन तथा ५. धातुसाम्य द्वारा स्वस्थ, दीप्त जीवन ।

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