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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1635
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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स꣡ घा꣢ नः सू꣣नुः꣡ शव꣢꣯सा पृ꣣थु꣡प्र꣢गामा सु꣣शे꣡वः꣢ । मी꣣ढ्वा꣢ꣳ अ꣣स्मा꣡कं꣢ बभूयात् ॥१६३५॥

स्वर सहित पद पाठ

सः꣢ । घ꣣ । नः । सूनुः꣢ । श꣡व꣢꣯सा । पृ꣣थु꣡प्र꣢गामा । पृ꣣थु꣢ । प्र꣣गामा । सुशे꣡वः꣢ । सु꣣ । शे꣡वः꣢꣯ । मी꣣ढ्वा꣢न् । अ꣣स्मा꣡क꣢म् । ब꣣भूयात् ॥१६३५॥


स्वर रहित मन्त्र

स घा नः सूनुः शवसा पृथुप्रगामा सुशेवः । मीढ्वाꣳ अस्माकं बभूयात् ॥१६३५॥


स्वर रहित पद पाठ

सः । घ । नः । सूनुः । शवसा । पृथुप्रगामा । पृथु । प्रगामा । सुशेवः । सु । शेवः । मीढ्वान् । अस्माकम् । बभूयात् ॥१६३५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1635
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

(सः) = वह प्रभु (घ) = निश्चय से (अस्माकम्) = हमारा (बभूयात्) = हो । कौन-सा प्रभु ? जो— १. (नः सूनुः) = हमें प्रेरणा देनेवाला है [षू प्रेरणे] । पुत्र भी सूनु कहलाता है, क्योंकि वह हमें कमाने इत्यादि की प्रेरणा देता है । सन्तानों के लिए ही तो मनुष्य कमाता है । प्रभु इस दृष्टिकोण से भी सूनु हैं कि भक्त उन्हें अपने हृदय में जन्म देने का प्रयत्न करता है । २. (शवसा पृथुप्रगामा) = गतिमय शक्ति [Dynamic energy=शवस्] के द्वारा वह प्रभु हमें विशाल क्रिया-क्षेत्र में चलानेवाला है ।

३. (सुशेवः प:) = वह उत्तम सुखों को प्राप्त करानेवाला है।

४. (मीढ्द्वान्) = अङ्ग-प्रत्यङ्ग में शक्ति का सेचन करनेवाला है। [मिह् सेचने]

यदि हम प्रभु से अपना सम्पर्क जोड़ेंगे तो सदा उसकी उत्तम प्रेरणा को सुनेंगे, प्रबल क्रियाशक्तिवाले होंगे, सुखमय जीवन का लाभ करेंगे तथा हमारा अङ्ग-प्रत्यङ्ग शक्तिसम्पन्न होगा । इस प्रकार का जीवन बनाकर हम सचमुच इस मन्त्र के ऋषि 'शुन: शेप' होंगे - अपने जीवनों में सुखों का निर्माण करनेवाले होंगे ।

भावार्थ -

हमारा एकमात्र आधार प्रभु ही हो । हम तन्मय हो जाएँ ।

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