Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1663
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
4

ज꣡रा꣢बोध꣣ त꣡द्वि꣢विड्ढि वि꣣शे꣡वि꣢शे य꣣ज्ञि꣡या꣢य । स्तो꣡म꣢ꣳ रु꣣द्रा꣡य꣢ दृशी꣣क꣢म् ॥१६६३॥

स्वर सहित पद पाठ

ज꣡रा꣢꣯बोध । ज꣡रा꣢꣯ । बो꣣ध । त꣢त् । वि꣣विड्ढि । विशे꣡वि꣢शे । वि꣣शे꣢ । वि꣣शे । यज्ञि꣡या꣢य । स्तो꣡म꣢꣯म् । रु꣢द्रा꣡य꣢ । दृ꣣शीक꣢म् ॥१६६३॥


स्वर रहित मन्त्र

जराबोध तद्विविड्ढि विशेविशे यज्ञियाय । स्तोमꣳ रुद्राय दृशीकम् ॥१६६३॥


स्वर रहित पद पाठ

जराबोध । जरा । बोध । तत् । विविड्ढि । विशेविशे । विशे । विशे । यज्ञियाय । स्तोमम् । रुद्राय । दृशीकम् ॥१६६३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1663
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
Acknowledgment

पदार्थ -

यह मन्त्र संख्या १५ पर द्रष्टव्य है। सरलार्थ यह है—(जराबोध) = हे बुढ़ापे में चेतनेवाले जीव! (विशेविशे यज्ञियाय) = प्रत्येक प्राणी के साथ सम्पर्क रखनेवाले (रुद्राय) =(रुत्+र) उपदेश देनेवाले प्रभु के लिए (तत्)=उस (दृशीकं स्तोमम्) = आँखों से दीखनेवाली स्तुति को (विविड्ढि) = व्याप्त कर।
सामान्यतः मनुष्य वाणी से ही प्रभु के स्तोत्रों को बोलता रहता है—यह श्रव्यभक्ति है। सब प्राणियों के हित में लगना ही प्रभु की दृश्य भक्ति है—यही प्रभु को प्रीणित कर सकती है। वास्तविक सुख का निर्माण तो यही भक्त कर पाता है, अतः ‘शुनःशेप’ (शुनम्—सुख, शेप=ह्लश द्वड्डद्मद्ग) कहलाता है।

इस भाष्य को एडिट करें
Top