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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1666
ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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त꣡द्वो꣢ गाय सु꣣ते꣡ सचा꣢꣯ पुरुहू꣣ता꣢य꣣ स꣡त्व꣢ने । शं꣢꣫ यद्गवे꣣ न꣢ शा꣣कि꣡ने꣢ ॥१६६६॥

स्वर सहित पद पाठ

त꣢त् । वः꣣ । गाय । सुते꣢ । स꣡चा꣢꣯ । पु꣣रुहूता꣡य꣢ । पु꣣रु । हूता꣡य꣢ । स꣡त्व꣢꣯ने । शम् । यत् । ग꣡वे꣢꣯ । न । शा꣣कि꣡ने꣢ ॥१६६६॥


स्वर रहित मन्त्र

तद्वो गाय सुते सचा पुरुहूताय सत्वने । शं यद्गवे न शाकिने ॥१६६६॥


स्वर रहित पद पाठ

तत् । वः । गाय । सुते । सचा । पुरुहूताय । पुरु । हूताय । सत्वने । शम् । यत् । गवे । न । शाकिने ॥१६६६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1666
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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पदार्थ -

प्रस्तुत मन्त्र की व्याख्या संख्या ११५ पर द्रष्टव्य है । सरलार्थ इस प्रकार है (वः पुरुहूताय) = जिसका आह्वान तुम्हारा पालन व पूरण करनेवाला है— उस (सत्वने) = कामादि शत्रुओं का शातन–विनाश करनेवाले के लिए तथा (गवे न) = गौ के समान निर्दोष के तथा शाकिने-शक्ति के मद में निर्बलों पर अत्याचारी के भी (शम्) = कल्याण करनेवाले प्रभु के लिए (सुते) = इस उत्पन्न जगत् में अथवा उत्पादन के निमित्त (सचा) = मिलकर (तत्)-उस स्तोत्र का (गाय) = गायन कर। यह गायन ही तेरी सच्ची शान्ति का साधन होगा और तू इस मन्त्र का ऋषि ‘शंयु' बन पाएगा। 

भावार्थ -

हम प्रभु का गायन करें और सच्ची शान्ति प्राप्त करें ।

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