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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1704
ऋषिः - विश्वामित्रः प्रागाथः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
1

इ꣡न्द्रा꣢ग्नी नव꣣तिं꣡ पुरो꣢꣯ दासपत्नीरधूनुतम् । साकमेकेन कर्मणा ॥१७०४॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣡न्द्रा꣢꣯ग्नी । इ꣡न्द्र꣢꣯ । अ꣣ग्नी꣡इति꣢ । न꣣वति꣢म् । पु꣡रः꣢꣯ । दा꣣स꣡प꣢त्नीः । दा꣣स꣢ । प꣣त्नीः । अ꣣धूनुतम् । सा꣣क꣢म् । ए꣡के꣢꣯न । क꣡र्म꣢꣯णा ॥१७०४॥


स्वर रहित मन्त्र

इन्द्राग्नी नवतिं पुरो दासपत्नीरधूनुतम् । साकमेकेन कर्मणा ॥१७०४॥


स्वर रहित पद पाठ

इन्द्राग्नी । इन्द्र । अग्नीइति । नवतिम् । पुरः । दासपत्नीः । दास । पत्नीः । अधूनुतम् । साकम् । एकेन । कर्मणा ॥१७०४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1704
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

मानव शरीर में काम-क्रोध आदि वासनाएँ न चाहते हुए भी प्रवेश कर जाती हैं। प्रविष्ट होकर ये उसका संहार करती हैं । संहार करने से इनका नाम 'दास' है [दस उपक्षये] । वैदिक साहित्य में शक्ति ‘पत्नी’ के रूप में चित्रित होती है, अतः इन कामादि दासों [दस्युओं] की शक्तियाँ ही दास पत्नियाँ हैं। अत्यन्त क्रियाशील [active] होने से ये नवति [नवन्ते गच्छन्ति] हैं। प्राणापान की साधना होने पर ही इन्हें कम्पित करके दूर करना सम्भव होता है, अतः मन्त्र में कहते हैं कि

हे (इन्द्राग्नी) = प्राणापानो! आप (पुरः) = सर्वप्रथम (नवतिम्) = इस बड़ी चुस्त (दासपत्नी:) = कामादि दासों की शक्तियों को (अधूनुतम्) = कम्पित कर देते हो । प्राणापान की साधना से वासना-वृत्तियाँ शिथिल पड़ जाती हैं, परन्तु 'इन्द्राग्नी' = प्राणापान इस कार्य को तभी कर पाते हैं जब (साकम्) = ये प्रभु के साथ होते हैं – जब श्वासोच्छ्वास के साथ ‘ओ३म्' का जप चलता है। (‘त्वया ह स्विद् युजा वयम्'), प्रभु के साथ मिलकर ही तो इन वासनाओं को जीतना सम्भव है, (एकेन कर्मणा)-प्रभु के साथ समान कर्मों के द्वारा [एक=समान] । यह वासना- विनाश कार्य तभी होता है जब हम प्रभु के समान निमार्णात्मक कार्यों में लगते हैं— प्रभु के समान पक्षपातादि की भावनाओं से ऊपर उठते हैं। (एकेन कर्मणा) = शब्दों का अर्थ [एक=मुख्य] 'मुख्य प्रयत्न के द्वारा ' भी है । ढिलमिल निश्चय से ये वासनाएँ दूर नहीं हुआ करतीं - ये तो प्रबल निश्चय होने पर ही दूर होंगी।

भावार्थ -

हम प्रभु के साथ मिलकर दास-पत्नियों को कम्पित कर डालें ।
 

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