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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 177
ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वणः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
4
दो꣣षो꣡ आगा꣢꣯द्बृ꣣ह꣡द्गा꣢य꣣ द्यु꣡म꣢द्गामन्नाथर्वण । स्तु꣣हि꣢ दे꣣व꣡ꣳ स꣢वि꣣ता꣡र꣢म् ॥१७७॥
स्वर सहित पद पाठदो꣣षा꣢ । उ꣣ । आ꣣ । अ꣣गात् । बृह꣢त् । गा꣣य । द्यु꣡म꣢꣯द्गामन् । द्यु꣡म꣢꣯त् । गा꣣मन् । आथर्वण । स्तुहि꣢ । दे꣣वम् । स꣣वि꣡ता꣢रम् ॥१७७॥
स्वर रहित मन्त्र
दोषो आगाद्बृहद्गाय द्युमद्गामन्नाथर्वण । स्तुहि देवꣳ सवितारम् ॥१७७॥
स्वर रहित पद पाठ
दोषा । उ । आ । अगात् । बृहत् । गाय । द्युमद्गामन् । द्युमत् । गामन् । आथर्वण । स्तुहि । देवम् । सवितारम् ॥१७७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 177
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 7;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 7;
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विषय - प्रकाश में, दृढ़ता से
पदार्थ -
मन्त्रश्रुत बातों पर हम आचरण करते रहें? इसके लिए आवश्यक है कि हम सदा सावधान रहें। (भूत्यै जागरणम्) = यह वेदवचन स्पष्ट कर रहा है कि 'विभूतिमय जीवन के लिए जागना आवश्यक है।' (अभूत्यै स्वप्नम्) = सोये और विभूति से पृथक् हुए । मन्त्र में कहा है कि (दोषा उ आगात्) = अब रात्रि आ गई । (बृहद् गाय) = उस प्रभु का खूब ही गायन करो । यह प्रभु का स्मरण हमें वासनाओं से बचाएगा। हममें वासनाओं से लड़ने की शक्ति नहीं है । हमारे हृदयों में प्रकाश होगा। उस प्रकाश में हमारा कर्तव्य-पथ हमें स्पष्ट दीखेगा।
मन्त्र के शब्दों में हम (द्युमद् गामन्) = प्रकाशमय मार्गवाले होंगे। इतना ही नहीं, के प्रभु सम्पर्क में प्रभु से शक्ति प्राप्त करके, हम (‘अथर्वण') = अपने मार्ग से डावाँडोल न होने के कारण [न थर्वति=चरति] होंगे। इसलिए रात्रि में सोने से पूर्व प्रभु का स्मरण अवश्य करें। वेद कहता है कि उस (देवम्) = सब दिव्य गुणों के भण्डार (सवितारम्) = सबको सदा उत्तम प्रेरणा देनेवाले प्रभु की स्(तुहि) = स्तुति करो ।
प्रभु के दिव्य गुणों का चिन्तन ही वस्तुतः स्तोता को उन दिव्य गुणों के धारण करने की प्रेरणा देता है। अपने जीवन को उत्तम बनाने के लिए यह स्तोता सदा प्रभु का ध्यान करता है। ध्यान करने के कारण ही 'दध्यङ्' कहलाता है। यह प्रभु का ध्यान ही इसे आथर्वण= अडिग बना देता है।
भावार्थ -
हम प्रभु की स्तुति करते हुए सदा प्रकाश को देखें और दृढ़ता से मार्ग का आक्रमण करें।
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