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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1830
गा꣣यत्रं꣡ त्रैष्टु꣢꣯भं꣣ ज꣢ग꣣द्वि꣡श्वा꣢ रू꣣पा꣢णि꣣ स꣡म्भृ꣢ता । दे꣣वा꣡ ओका꣢꣯ꣳसि चक्रि꣣रे꣢ ॥१८३०
स्वर सहित पद पाठगा꣣यत्र꣢म् । त्रै꣡ष्टु꣢꣯भम् । त्रै । स्तु꣣भम् । ज꣡ग꣢꣯त् । वि꣡श्वा꣢꣯ । रू꣣पा꣡णि꣢ । स꣡म्भृ꣢꣯ता । सम् । भृ꣣ता । देवाः꣢ । ओ꣡का꣢꣯ꣳसि । च꣣क्रिरे꣢ ॥१८३०॥
स्वर रहित मन्त्र
गायत्रं त्रैष्टुभं जगद्विश्वा रूपाणि सम्भृता । देवा ओकाꣳसि चक्रिरे ॥१८३०
स्वर रहित पद पाठ
गायत्रम् । त्रैष्टुभम् । त्रै । स्तुभम् । जगत् । विश्वा । रूपाणि । सम्भृता । सम् । भृता । देवाः । ओकाꣳसि । चक्रिरे ॥१८३०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1830
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 6; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 6; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
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विषय - देवों का निवास स्थान
पदार्थ -
ऋग्वेद का नाम यहाँ‘गायत्रं त्रैष्टुभं जगत्' दिया गया है, क्योंकि इसमें इन्हीं छन्द के मन्त्रों की प्रधानता है। ऋग्वेद में कुल ३,९४,२२१ अक्षर हैं, जिनमें ३,१०,३८२ अक्षर इन तीन छन्दों के हैं, शेष ८३,८४१ अक्षर अन्य छन्दों के हैं। इससे ऋग्वेद का यह नाम उपयुक्त ही है । ७७ प्रतिशत मन्त्र इन्हीं छन्दों के हैं, शेष कुल मन्त्र २३ प्रतिशत हैं। अक्षरों के दृष्टि से तो ७८ प्रतिशत अक्षर इन्हीं छन्दों में हैं, शेष कुल २२ प्रतिशत हैं ।
ऋग्वेद विज्ञानवेद है इसमें (विश्वा रूपाणि संभृता) = सब आकृतिमान् पदार्थों का संग्रह है। इसमें तृण से लेकर सूर्यपर्यन्त सभी पदार्थों का ज्ञान दिया गया है । ११ पृथिवीस्थ, ११ अन्तरिक्षस्थ व ११ द्युलोकस्थ तेतीस के तेतीस (देवा:) = देवताओं ने इस ऋग्वेद में (ओकांसि) = अपने घरों को (चक्रिरे) = बनाया है, अर्थात् सभी देवों का इसमें प्रतिपादन है । इस विज्ञानवेद के अध्ययन से ही हम इन सब प्राकृतिक देवों को अच्छी प्रकार समझ सकेंगे, इन्हें ठीक-ठीक समझकर इनका सदुपयोग कर पाएँगे और हमारा यह शरीर भी 'देवानां पू:'-देवनगरी बन सकेगा।
इन देवों के ज्ञान से ही इनके अधिष्ठाता महादेव का ज्ञान होता है और इस प्रकार प्रभु के ज्ञान के लिए भी वेदों का अध्ययन नितान्त आवश्यक है।
हम 'ऋग्, यजुः व साम' इन तीनों प्रकार के मन्त्रों का अध्ययन करें, जिससे हमारे जीवन में पूर्णता आ सके । विज्ञानपूर्वक होने से हमारे कर्म उत्तम हों और प्रभु-स्मरण से अहंकारशून्य हों । तीन ही प्रकार के ये मन्त्र हैं । ये ही तीन प्रकार के मन्त्र ' अथर्ववेद' में भी हैं । भिन्न प्रकार के मन्त्र न होने से अथर्व का अलग उल्लेख नहीं किया गया है ।
भावार्थ -
मैं उन ऋचाओं का अध्ययन करूँ, जिनमें पदार्थमात्र का ज्ञान दिया गया है।
टिप्पणी -
नोट—‘देवों ने इसमें निवास किया है' वाक्य का अभिप्राय यह है कि इसमें सारे पदार्थों का ज्ञान दिया गया है और ‘रूपाणि संभृता' से ऐसा स्पष्ट है कि वस्तुओं के निर्माण का- उन्हें रूप देने का भी इसमें ज्ञान दिया गया है ।