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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 189
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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पा꣣वका꣢ नः꣣ स꣡र꣢स्वती꣣ वा꣡जे꣢भिर्वा꣣जि꣡नी꣢वती । य꣣ज्ञं꣡ व꣢ष्टु धि꣣या꣡व꣢सुः ॥१८९॥
स्वर सहित पद पाठपा꣣वका꣢ । नः꣣ । स꣡र꣢꣯स्वती । वा꣡जे꣢꣯भिः । वा꣣जि꣡नी꣢वती । य꣣ज्ञ꣢म् । व꣣ष्टु । धिया꣡व꣢सुः । धि꣣या꣢ । व꣣सुः ॥१८९॥
स्वर रहित मन्त्र
पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । यज्ञं वष्टु धियावसुः ॥१८९॥
स्वर रहित पद पाठ
पावका । नः । सरस्वती । वाजेभिः । वाजिनीवती । यज्ञम् । वष्टु । धियावसुः । धिया । वसुः ॥१८९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 189
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 8;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 8;
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विषय - तीन मधुर अभिलाषाएँ
पदार्थ -
इस मन्त्र का ऋषि ‘मधुच्छन्दा'=मधुर इच्छाओंवाला प्रार्थना करता है कि (नः) = हमारे लिए (सरस्वती)=प्रवाह से चलनेवाला ज्ञान (पावका)=पवित्र करनेवाला हो। यह ज्ञान की देवी हमारे लिए (वाजेभिः)=मनोमय, प्राणमय व अन्नमयकोशों के बलों से (वाजिनीवती) = बलों को देनेवाली, शक्तिशाली बनानेवाली हो तथा (धियावसुः) = ज्ञानरूप धन का धनी यह व्यक्ति (यज्ञं वष्टु) = यज्ञमय कर्म की कामना करे।
मधुच्छन्दा की तीन मधुर अभिलाषाएँ इस प्रकार हैं -
१. (ज्ञान मेरे जीवन को निर्मल बनाए) - वस्तुतः ज्ञान ही हमारे जीवन को पवित्र करता है। जिस प्रकार अग्नि में पड़कर सोना निखर जाता है, इसी प्रकार ज्ञानाग्नि में तपकर मानव निखरकर निर्मल हो जाता है।
२. (यह ज्ञान मुझे शक्तिशाली बनाए)- विज्ञानमयकोश का बल हमारे निचले सभी कोशों को बलयुक्त करेगा, क्योंकि सभी कोशों में चल रही क्रियाओं को उसे ही पवित्र करना है।
३. पवित्र और शक्तिशाली बनकर (मैं सदा यज्ञिय जीवनवाला बनूँ)। मेरे जीवन से कुछ-न-कुछ लोकहित का कार्य सदा चलता रहे। मैं अपने में ही रमा न रह जाऊँ, दूसरों के दुःखों में भी प्रवेश कर सकूँ ।
भावार्थ -
मुझे पवित्रता, शक्ति तथा यज्ञमय जीवन प्राप्त हो ।
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