Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 192
ऋषिः - सत्यधृतिर्वारुणिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
6
म꣡हि꣢ त्री꣣णा꣡मव꣢꣯रस्तु द्यु꣣क्षं꣢ मि꣣त्र꣡स्या꣢र्य꣣म्णः꣢ । दु꣣राध꣢र्षं꣣ व꣡रु꣢णस्य ॥१९२॥
स्वर सहित पद पाठम꣡हि꣢꣯ । त्री꣣णा꣢म् । अवरि꣡ति꣢ । अ꣣स्तु । द्युक्ष꣢म् । द्यु꣣ । क्ष꣢म् । मि꣣त्र꣡स्य꣢ । मि꣣ । त्र꣡स्य꣢꣯ । अ꣣र्यम्णः꣢ । दु꣣रा꣡धर्ष꣢म् । दुः꣣ । आध꣡र्ष꣢म् । व꣡रु꣢꣯णस्य ॥१९२॥
स्वर रहित मन्त्र
महि त्रीणामवरस्तु द्युक्षं मित्रस्यार्यम्णः । दुराधर्षं वरुणस्य ॥१९२॥
स्वर रहित पद पाठ
महि । त्रीणाम् । अवरिति । अस्तु । द्युक्षम् । द्यु । क्षम् । मित्रस्य । मि । त्रस्य । अर्यम्णः । दुराधर्षम् । दुः । आधर्षम् । वरुणस्य ॥१९२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 192
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 8;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 8;
Acknowledgment
विषय - जीवन के तीन सिद्धान्त
पदार्थ -
इस मन्त्र का द्रष्टा 'सत्यधृति वारुणि' है। अपने जीवन में तीन सत्यों को धारण करने के कारण यह सत्यधृति है और श्रेष्ठ जीवनवाला होने के कारण ‘वारुणि’ है। यह प्रार्थना करता है कि (त्रीणाम्) = तीन का (अवः अस्तु) = रक्षण मुझे प्राप्त हो, अर्थात् निम्न तीन सिद्धान्तों को मैं अपने जीवन में सदा सुरक्षित कर पाऊँ ।
(प्रथम सत्य )- (मित्रस्य महि)= मुझे मित्र का महनीय रक्षण प्राप्त हो । 'त्रिमिदा स्नेहने' धातु से बनकर मित्र शब्द स्नेह का वाचक है। स्नेह का सिद्धान्त मेरे जीवन का प्रथम नियम बने। इस प्रकार मेरा जीवन 'महि' = महनीय - प्रशंसनीय हो, सयन के जीवन से माधुर्य का प्रवाह ही बहता है।
(द्वितीय) - (सत्य–अर्यम्णः) = द्युक्षम्-मुझे अर्यमा का रक्षण प्राप्त हो। ‘अर्यमा इति तम् आहुर्यो ददाति'–अर्यमा देनेवाले को कहते हैं। जीवन का सिद्धान्त देना हो । पञ्चयज्ञ मुझे देनेवाला ही तो बनाते हैं। यह दान मुझे 'द्यु-क्ष' धुलोक में स्वर्ग में निवास करनेवाला बनाता है। यज्ञ के अभाव में हमारा यह लोक भी नरक-सा हो जाता है।
(तृतीय सत्य) - (दुराधर्षं वरुणस्य-वरुण) = का धर्षणशून्य रक्षण मुझे प्राप्त हो । वरुण पाशी है। संयम=बन्धनवाला है। मेरा जीवन आत्मसंयमवाला हो। संयमवाला होने पर यह धर्षणशून्य हो जाएगा। मेरे इस जीवन का कोई पराभाव न कर सकेगा।
भावार्थ -
स्नेह, दान व संयम - ये तीन मेरे जीवन के सूत्र हों।
इस भाष्य को एडिट करें