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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 235
ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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अ꣣भि꣡ प्र वः꣢꣯ सु꣣रा꣡ध꣢स꣣मि꣡न्द्र꣢मर्च꣣ य꣡था꣢ वि꣣दे꣢ । यो꣡ ज꣢रि꣣तृ꣡भ्यो꣢ म꣣घ꣡वा꣢ पुरू꣣व꣡सुः꣢ स꣣ह꣡स्रे꣢णेव꣣ शि꣡क्ष꣢ति ॥२३५॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣भि꣢ । प्र । वः꣣ । सुरा꣡ध꣢सम् । सु꣣ । रा꣡ध꣢꣯सम् । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣र्च । य꣡था꣢꣯ । वि꣣दे꣢ । यः । ज꣣रितृ꣡भ्यः꣢ । म꣣घ꣡वा꣢ । पु꣣रूव꣡सुः꣢ । पु꣣रू । व꣡सुः꣢꣯ । स꣣ह꣡स्रे꣢ण । इ꣣व । शि꣡क्ष꣢꣯ति ॥२३५॥


स्वर रहित मन्त्र

अभि प्र वः सुराधसमिन्द्रमर्च यथा विदे । यो जरितृभ्यो मघवा पुरूवसुः सहस्रेणेव शिक्षति ॥२३५॥


स्वर रहित पद पाठ

अभि । प्र । वः । सुराधसम् । सु । राधसम् । इन्द्रम् । अर्च । यथा । विदे । यः । जरितृभ्यः । मघवा । पुरूवसुः । पुरू । वसुः । सहस्रेण । इव । शिक्षति ॥२३५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 235
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1;
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पदार्थ -

गत मन्त्र में उपासक 'ज्ञान, शक्ति व त्याग' के लिए तथा वासनाओं पर विजय प्राप्ति के लिए प्रभु को पुकारते हैं। वस्तुतः इस संसार में वह प्रभु ही हमें सिद्धि प्राप्त करानेवाले हैं। इस मन्त्र का ऋषि ‘प्रस्कण्व'=अत्यन्त मेधावी अपने सब साथियों से यह रहस्य की बात कहता है कि (वः)=आप सबके (सुराधसम्) = उत्तम सफलता को प्राप्त करानेवाले (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को (अभि) = जब-जब कार्यों से अवकाश मिले तब अर्थात् चारों ओर से उसी प्रभु की ओर आकर प्(र-अर्च) = खूब अर्चना करो। इस अर्चना से आपको (यथाविदेयथार्थ) = ज्ञान प्राप्त होगा। वस्तुतः ज्ञान का स्त्रोत अन्दर से ही उमड़ता है। बाह्य ज्ञान उस अन्त:स्रोत को क्रियाशील बनाने में सहायक होता है, अतः उस प्रभु की अर्चना हमें यथार्थ ज्ञान प्राप्त कराएगी। (यः) = वे प्रभु (जरितृभ्यः) = स्तोताओं के लिए (मघवा) = [मा- अघ] पापशून्य धनवाले हैं, (पुरुवसुः) = पालन और पूरण के लिए पर्याप्त धन देनेवाले हैं और (सहस्त्रेण इव)=आमोद के साथ सहस् (शिक्षति) = देते हैं। संक्षेप में प्रभु अपने भक्तों को पापशून्य, पालन-पूरण के लिए पर्याप्त, प्रमोदमय धन प्राप्त कराते हैं। प्रभु भक्तों को कभी खाने-पी ने का कष्ट होता हो, ऐसी बात है नहीं।

भावार्थ -

प्रभुकृपा से हम अर्चना करनेवाले बनें, जिससे हमारा जीवन सफल, यथार्थज्ञानवाला, पापशून्य तथा पर्याप्त प्रमोदमय सम्पत्ति-सम्पन्न बने।

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