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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 242
ऋषिः - प्रगाथो घौरः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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मा꣡ चि꣢द꣣न्य꣡द्वि श꣢꣯ꣳसत꣣ स꣡खा꣢यो꣣ मा꣡ रि꣢षण्यत । इ꣢न्द्र꣣मि꣡त्स्तो꣢ता꣣ वृ꣡ष꣢ण꣣ꣳ स꣡चा꣢ सु꣣ते꣡ मुहु꣢꣯रु꣣क्था꣡ च꣢ शꣳसत ॥२४२॥
स्वर सहित पद पाठमा꣢ । चि꣣त् । अन्य꣢त् । अ꣣न् । य꣢त् । वि । शँ꣣सत । स꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣣यः । मा꣢ । रि꣣षण्यत । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । इत् । स्तो꣣त । वृ꣡ष꣢꣯णम् । स꣡चा꣢꣯ । सु꣣ते꣢ । मु꣡हुः꣢꣯ । उ꣣क्था꣢ । च꣣ । शँसत ॥२४२॥
स्वर रहित मन्त्र
मा चिदन्यद्वि शꣳसत सखायो मा रिषण्यत । इन्द्रमित्स्तोता वृषणꣳ सचा सुते मुहुरुक्था च शꣳसत ॥२४२॥
स्वर रहित पद पाठ
मा । चित् । अन्यत् । अन् । यत् । वि । शँसत । सखायः । स । खायः । मा । रिषण्यत । इन्द्रम् । इत् । स्तोत । वृषणम् । सचा । सुते । मुहुः । उक्था । च । शँसत ॥२४२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 242
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1;
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विषय - केवल उस प्रभु का शंसन
पदार्थ -
गत मन्त्र की भावना के अनुसार प्राणों की साधना करके व्यक्ति जहाँ अपने शरीर को स्वस्थ बनाता है, वहाँ अपने मन को निर्मल बनाता है और बुद्धि को तीव्र | ऐसा जीवन बनाकर यह जिस निर्णय पर पहुँचता है, उसकी घोषणा इस रूप में करता है - (सखायः) = हे मित्रो! (अन्यत्)=प्रभु को छोड़ किसी अन्य का (मा चित्) = मत (विशंसत) = शंसन करो। केवल प्रभु के ही उपासक बनो। केवल प्रभु के उपासक बनने का परिणाम यह होगा कि (मा)= मत (रिषण्यत)=हिंसित होओ। मनुष्य प्रभु को छोड़ प्रकृति व जीवों का उपासक बनकर सांसारिक दृष्टिकोण से कुछ आगे बढ़ा हुआ प्रतीत होता है, परन्तु उसे वास्तविक शान्ति कभी प्राप्त
= नहीं हो सकती। इसलिए इस मन्त्र का ऋषि ‘प्रगाथ'=प्रभु का प्रकृष्ट गायन करनेवाला घौर= उदात्त स्वभाववाला काण्वः = अत्यन्त मेधावी कहता है कि (इन्द्रम् इत्) =उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को ही (स्तोत)=स्तुत करो (वृषणम्) = उस प्रभु को जो सब प्रकार के सुखों की वर्षा करनेवाले हैं। प्रभु परमैश्वर्यशाली होने के साथ बरसनेवाले भी हैं अतः सुते इस उत्पन्न जगत् में (सचा) = मिलकर (मुहुः) = फिर-फिर (उक्था च) = स्तोत्रों का (शंसत) = शंसन करो। घरों में प्रातः - सायं अवश्य ऐसा समय होना चाहिए जबकि घर में सभी मिलकर प्रभु का स्तवन करें। इस प्रकार का सम्मिलित स्तवन सारे वायुमण्डल को उत्कृष्ट बनाता है। हममें प्रभु की शक्ति का संचार होता है। हमारा जीवन प्रभुमय होकर वासनाजाल से ऊपर उठता है और परिणामतः ऊँचा बनता है।
भावार्थ -
हम केवल प्रभु के ही उपासक बनें।
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