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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 263
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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स꣣त्य꣢मि꣣त्था꣡ वृषे꣢꣯दसि꣣ वृ꣡ष꣢जूतिर्नोऽवि꣣ता꣢ । वृ꣢षा꣣꣬ ह्यु꣢꣯ग्र शृण्वि꣣षे꣡ प꣢रा꣣व꣢ति꣣ वृ꣡षो꣢ अर्वा꣣व꣡ति꣢ श्रु꣣तः꣢ ॥२६३॥

स्वर सहित पद पाठ

स꣣त्य꣢म् । इ꣣त्था꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । इत् । अ꣣सि । वृ꣡ष꣢꣯जूतिः । वृ꣡ष꣢꣯ । जू꣣तिः । नः । अविता꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । हि । उ꣣ग्र । शृण्विषे꣢ । प꣣राव꣡ति꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । उ꣣ । अर्वाव꣡ति꣢ । श्रु꣣तः꣢ ॥२६३॥


स्वर रहित मन्त्र

सत्यमित्था वृषेदसि वृषजूतिर्नोऽविता । वृषा ह्युग्र शृण्विषे परावति वृषो अर्वावति श्रुतः ॥२६३॥


स्वर रहित पद पाठ

सत्यम् । इत्था । वृषा । इत् । असि । वृषजूतिः । वृष । जूतिः । नः । अविता । वृषा । हि । उग्र । शृण्विषे । परावति । वृषा । उ । अर्वावति । श्रुतः ॥२६३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 263
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 4;
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पदार्थ -

प्रभु जीव से कहते हैं कि यदि तू सचमुच अपना जीवन पूर्वमन्त्र के चार शब्दों के अनुसार बिताता है तो (इत्था) = इस प्रकार (इत्) = निश्चय से (सत्यम्) = सचमुच (वृषा असि) = तू शक्तिशाली व धर्मयुक्त है [वृष- धर्म ] । (वृषजूति:) = ऐसा बनने पर तू शक्तिशाली व धर्मयुक्त क्रियाओंवाला कहलाएगा [जूति = क्रिया] । ऐसा करने पर ही (तू न:)हमारे (अविता) = अंश का दोहन करनेवाला होगा [अव्=भागदुधे], अर्थात् तेरे लिए यह कहा जा सकेगा कि तू अपने अन्दर दिव्यता का अवतरण कर रहा है। हे (उग्र) = उदात्त – उत्कृष्ट स्वभाववाले जीव! (हि)=ऐसा करने पर ही तू (परावति) = दूर क्षेत्र में, अर्थात् परलोक व अध्यात्म के क्षेत्र में (वृषा) = शक्तिशाली (श्रुतः)=प्रसिद्ध होगा और ऐसा करने पर ही (अर्वावति)= समीप के, ऐहलौकिक क्षेत्र में भी (वृष:)=शक्तिशाली व धर्मयुक्त (शृण्विषे) = प्रसिद्ध होगा।

गत मन्त्र की चार बातों को अपने जीवन का लक्ष्य बनानेवाला व्यक्ति सचमुच शक्तिशाली व धार्मिक बनता है–उसकी प्रत्येक क्रिया धर्मानुकूल होती है। वह निरन्तर प्रभु की ओर बढ़ रहा होता है। उसे अभ्युदय व निःश्रेयस दोनों की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इस मार्ग पर चलनेवाला व्यक्ति ही समझदार है- (मेधातिथि)=यह निरन्तर मेधा के साथ चलनेवाला है [मेधया अतति]।

भावार्थ -

हम भी ओज व द्युम्न आदि को जीवन का ध्येय बनाकर अपने में दिव्यता का अवतरण करें।

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