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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 390
ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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स꣡खा꣢य꣣ आ꣡ शि꣢षामहे꣣ ब्र꣡ह्मेन्द्रा꣢꣯य व꣣ज्रि꣡णे꣢ । स्तु꣣ष꣢ ऊ꣣ षु꣢ वो꣣ नृ꣡त꣢माय धृ꣣ष्ण꣡वे꣢ ॥३९०॥
स्वर सहित पद पाठस꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣣यः । आ꣢ । शि꣣षामहे । ब्र꣡ह्म꣢꣯ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । व꣣ज्रि꣡णे꣢ । स्तु꣣षे । उ꣣ । सु꣢ । वः꣣ । नृ꣡त꣢꣯माय । धृ꣣ष्ण꣡वे꣢ ॥३९०॥
स्वर रहित मन्त्र
सखाय आ शिषामहे ब्रह्मेन्द्राय वज्रिणे । स्तुष ऊ षु वो नृतमाय धृष्णवे ॥३९०॥
स्वर रहित पद पाठ
सखायः । स । खायः । आ । शिषामहे । ब्रह्म । इन्द्राय । वज्रिणे । स्तुषे । उ । सु । वः । नृतमाय । धृष्णवे ॥३९०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 390
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 4;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 4;
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विषय - आओ, मिलकर उसका स्तवन करें
पदार्थ -
(विश्वमनाः) = व्यापक मनवाला (वैयश्वः) = उत्तम इन्द्रियरूपी घोड़ोंवाला इस मन्त्र का ऋषि कहता है कि (सखायः) = मित्रो ! हम (इन्द्राय) = सर्वशक्ति सम्पन्न और (वज्रिणे) = सदा स्वाभाविक क्रियावाले प्रभु के लिए (ब्रह्म) = स्तोत्र को (आशिषामहे) = चाहते हैं । अर्थात् हम सब मिलकर उस प्रभु का स्तवन करें। प्रभु के स्तवन से हमारे अन्दर भी शक्ति का संचार होगा और हम भी स्वाभाविक रूप से क्रिया करने की प्रवृत्तिवाले होंगे।
एवं विश्वमना सबको प्रेरणा देकर कहता है कि मैं तो (उ) = निश्चय से उस प्रभु का (सुस्तुषे) = पूजा की भावना से स्तवन करता ही हूँ जोकि (व:) = तुम्हें (नृतमाय) = सबसे अधिक आगे ले-चलनेवाले हैं और इस उन्नति के मार्ग में आनेवाले शतशः विघ्नों का धृष्णवे=धर्षण करनेवाले हैं। मैं तो उसकी स्तुति करता ही हूँ।
भावार्थ -
प्रभु के स्तवन के लिए में अपने सब साथियों को प्रेरित करूँ और प्रभु-स्तवन में लग जाऊँ।
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