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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 479
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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प꣡व꣢स्वेन्दो꣣ वृ꣡षा꣢ सु꣣तः꣢ कृ꣣धी꣡ नो꣢ य꣣श꣢सो꣣ ज꣡ने꣢ । वि꣢श्वा꣣ अ꣢प꣣ द्वि꣡षो꣢ जहि ॥४७९॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯स्व । इ꣣न्दो । वृ꣡षा꣢꣯ । सु꣣तः꣢ । कृ꣣धी꣢ । नः꣣ । यश꣡सः꣢ । ज꣡ने꣢꣯ । वि꣡श्वाः꣢꣯ । अ꣡प꣢꣯ । द्वि꣡षः꣢꣯ । ज꣣हि ॥४७९॥
स्वर रहित मन्त्र
पवस्वेन्दो वृषा सुतः कृधी नो यशसो जने । विश्वा अप द्विषो जहि ॥४७९॥
स्वर रहित पद पाठ
पवस्व । इन्दो । वृषा । सुतः । कृधी । नः । यशसः । जने । विश्वाः । अप । द्विषः । जहि ॥४७९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 479
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
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विषय - शक्ति- यश-प्रेम
पदार्थ -
'अमहीयु: ' = जो अपने साथ पृथिवी को-पार्थिव भोगों को नहीं जोड़ता अर्थात् पार्थिव भोगों में नहीं फँसता वह 'आङ्गिरस' = अङ्ग-प्रत्यङ्ग में शक्तिवाला पुरुष प्रार्थना करता है कि (इन्दो) = हे शक्ति का संचार करनेवाले सोम! (पवस्व) = तू मेरे जीवन को पवित्र कर । (सुतः) = उत्पन्न हुआ-हुआ तू (वृषा) = शक्तिशाली बनानेवाला है। तू (नः) = हमें जने-अपने समाज में (यशसः कृधी) = यशस्वी कर और (विश्वा द्विष:) = सब द्वेष की भावनाओं को अप जहि हमसे दूर कर दीजिए।
सोम के संयम से जीवन पवित्र बनता है। पवित्र ही नहीं, शक्तिशाली भी होता है। इस पवित्रता और शक्ति के परिणामरूप यह अहमीयु कोई भी ऐसा कर्म नहीं करता जो उसके
अपयश का कारण बने । स्वार्थ की भावनाओं से ऊपर उठकर यह लोकहित के लिए कर्म करता है और परिणामतः इसकी यश की गन्ध चारों ओर फैलती है। यह किसी के साथ द्वेष भी नहीं करता। इसका जीवन सबके प्रति प्रेम के बर्ताववाला होता है ।
भावार्थ -
सोम के संयम से मैं पवित्र शक्ति सम्पन्न, यशस्वी तथा निर्दोष बन जाऊँ।
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