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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 60
ऋषिः - उत्कीलः कात्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
7
अ꣣य꣢म꣣ग्निः꣢ सु꣣वी꣢र्य꣣स्ये꣢शे꣣ हि꣡ सौभ꣢꣯गस्य । रा꣡य꣣ ई꣢शे स्वप꣣त्य꣢स्य꣣ गो꣡म꣢त꣣ ई꣡शे꣢ वृत्र꣣ह꣡था꣢नाम् ॥६०॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣य꣢म् । अ꣣ग्निः꣢ । सु꣣वी꣡र्य꣣स्य । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯स्य । ई꣡शे꣢꣯ । हि । सौ꣡भ꣢꣯गस्य । सौ । भ꣣गस्य । रायः꣢ । ई꣣शे । स्वपत्य꣡स्य꣣ । सु꣣ । अपत्य꣡स्य꣢ । गो꣡म꣢꣯तः । ई꣡शे꣢꣯ । वृ꣣त्रह꣡था꣢नाम् । वृ꣣त्र । ह꣡था꣢꣯नाम् ॥६०॥
स्वर रहित मन्त्र
अयमग्निः सुवीर्यस्येशे हि सौभगस्य । राय ईशे स्वपत्यस्य गोमत ईशे वृत्रहथानाम् ॥६०॥
स्वर रहित पद पाठ
अयम् । अग्निः । सुवीर्यस्य । सु । वीर्यस्य । ईशे । हि । सौभगस्य । सौ । भगस्य । रायः । ईशे । स्वपत्यस्य । सु । अपत्यस्य । गोमतः । ईशे । वृत्रहथानाम् । वृत्र । हथानाम् ॥६०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 60
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6;
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विषय - अग्नि के तीन लक्षण
पदार्थ -
(अयम्)=यह (अग्निः)= आगे बढ़ने के स्वभाववाला जीव (सुवीर्यस्य) - उत्तम वीर्य का (ईशे) = ईश होता है। भोजन के अनुरूप शरीर में शक्ति का निर्माण होता है - तामस भोजन से तामस शक्ति, राजस से राजस व सात्त्विक से सात्त्विक । अग्रिङ सुवीर्य का ईश है, इसलिए हि-निश्चय से (सौभगस्य) = उत्तमता व सौन्दर्य का भी ईश है। अग्नि का यही पहला लक्षण है।
दूसरा लक्षण यह है कि यह अग्नि (रायः) = [रा दाने] देने योग्य धन का (इशे) = ईश होता है, क्योंकि यह सदा धन का दान में विनियोग करता है, इसीलिए स्(वपत्यस्य) = उत्तम सन्तान का भी ईश बनता है। ("श्रदस्मै वचसे नरो दधातन यदाशीर्दा दम्पती वाममश्नुतः ”) प्रभु कहते हैं कि इस वचन पर श्रद्धा करो कि दिल खोलकर दान देनेवाले पति-पत्नी सुन्दर सन्तान प्राप्त करते हैं। दान लोभ को नष्ट कर सब व्यसनों को नष्ट कर देता है, अतः पवित्र पति-पत्नी उत्तम सन्तान क्यों न पाएँगे?
इस अग्नि का तीसरा लक्षण यह है कि यह (गोमतः) = गोमानों का (ईशे) = मुखिया होता है। उस समय जबकि सब गौ रखते थे, सभी गोमान् थे। उन गोमानों में भी जो खूब उत्तम गौवें रखता है वह गोमानों का ईश (वृत्रहथानाम्)=वृत्र को मारनेवालों का भी ईश बनता है। कामादि वासनाएँ वृत्र हैं, गो- दुग्ध का सेवन करनेवाला उनसे बचा रहता है । यह दुग्ध सात्त्विक होने से सात्त्विक भावों को ही जाग्रत् करता है, इसीलिए वेद में गौ को रुद्र और आदित्यों को पैदा करनेवाली कहा गया है
भावार्थ -
मनुष्य सुवीर्य का ईश बन सौभाग्य का ईश बने, धन का दान करते हुए उत्तम सन्तान प्राप्त करे, गो- दुग्ध के सेवन से सात्त्विक वृत्तिवाला बने। इस प्रकार अपने को इन तीन उत्तम नियमों में बाँधकर मनुष्य मन्त्र का ऋषि ‘उत्कील' बने।
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