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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 7
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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ए꣢ह्यू꣣ षु꣡ ब्रवा꣢꣯णि꣣ ते꣡ऽग्न꣢ इ꣣त्थे꣡त꣢रा꣣ गि꣡रः꣢ । ए꣣भि꣡र्व꣢र्धास꣣ इ꣡न्दु꣢भिः ॥७॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । इ꣣हि । उ । सु꣢ । ब्र꣡वा꣢꣯णि । ते꣣ । अ꣡ग्ने꣢꣯ । इ꣣त्था꣢ । इ꣡त꣢꣯राः । गि꣡रः꣢꣯ । ए꣣भिः꣢ । व꣣र्धासे । इ꣡न्दु꣢꣯भिः ॥७॥
स्वर रहित मन्त्र
एह्यू षु ब्रवाणि तेऽग्न इत्थेतरा गिरः । एभिर्वर्धास इन्दुभिः ॥७॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । इहि । उ । सु । ब्रवाणि । ते । अग्ने । इत्था । इतराः । गिरः । एभिः । वर्धासे । इन्दुभिः ॥७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 7
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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विषय - प्रभु सामीप्य का परिणाम
पदार्थ -
हे (अग्ने)= प्रभो! (आ इहि)= आप मेरे हृदय में आइए, क्योंकि (ते)= आपके सामीप्य से मैं (इतराः)=सामान्य व्यवहार की बातों को भी (इत्था ब्रवाणि)= सत्य ही बोलता हूँ। प्रभु के सन्निकर्ष से मानव-जीवन में यह कितनी बड़ी क्रान्ति उत्पन्न हो जाती है कि वह सदा सत्य का पालन करता है। उसका व्यवहार शुद्ध होता है। उसे किसी भी बात का भय सत्य के मार्ग से विचलित नहीं कर पाता और लोभ इन्हें आकृष्ट नहीं कर सकता। इनकी दृढ़ता लोगों के आश्चर्य का कारण बनती है। इनके जीवन में उन्हें कोई महान् शक्ति कार्य करती हुई दृष्टिगोचर होती है। दूसरे शब्दों में, इनके जीवन लोगों के सामने प्रभु की महिमा को प्रकट करते हैं।
इसीलिए मन्त्र में कहा है कि (एभिः) = इन (इन्दुभिः) = शक्तिशाली पुरुषों से ['इन्द'= be powerful] (वर्धासे)= आप [प्रभु] वृद्धि को प्राप्त करते हैं। आपकी लोगों में ख्याति होती है।
ये लोग सत्य पर दृढ़ता से चलने से सभी दिव्य गुणों को धारण कर इस मन्त्र के ऋषि ‘भरद्वाज' बनते हैं।
भावार्थ -
उपासना से मनुष्य का व्यवहार सत्यमय होता है और इन उपासकों में परमेश्वर की महिमा प्रकट होती है।
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