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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 745
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
आ꣡ घा꣢ गम꣣द्य꣢दि꣣ श्र꣡व꣢त्सह꣣स्रि꣡णी꣢भिरू꣣ति꣡भिः꣢ । वा꣡जे꣢भि꣣रु꣡प꣢ नो꣣ ह꣡व꣢म् ॥७४५॥
स्वर सहित पद पाठआ । घ꣣ । गमत् । य꣡दि꣢꣯ । श्र꣡व꣢꣯त् । स꣣हस्री꣡णी꣢भिः । ऊ꣣ति꣡भिः꣢ । वा꣡जे꣢꣯भिः । उ꣡प꣢꣯ । नः꣣ । ह꣡वम्꣢꣯ ॥७४५॥
स्वर रहित मन्त्र
आ घा गमद्यदि श्रवत्सहस्रिणीभिरूतिभिः । वाजेभिरुप नो हवम् ॥७४५॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । घ । गमत् । यदि । श्रवत् । सहस्रीणीभिः । ऊतिभिः । वाजेभिः । उप । नः । हवम् ॥७४५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 745
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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विषय - वासनाओं के शिकार न हो जाएँ
पदार्थ -
मनुष्य प्रभु को पुकारता है और यदि उसकी पुकार सुनी जाती है तो उसे सहायता भी प्राप्त होती है, परन्तु मनुष्य की पुकार सदा तो नहीं सुनी जाती । मन्त्र का 'यदि' शब्द इस भावना को सुव्यक्त कर रहा है। पुकार कब सुनी जाती है ? इस प्रश्न का उत्तर भी मन्त्र का ‘वाजेभि:' शब्द दे रहा है। ‘वज गतौ' धातु से यह शब्द बना है । गतिशीलता होने पर ही हम पुकार को सुनाने के अधिकारी बनते हैं। हम केवल प्रार्थना करें और प्रयत्न कुछ न करें तो वह प्रार्थना निष्फल ही है, अत: मन्त्र में कहते हैं कि (वाजेभिः) = क्रियाशीलता के द्वारा (नः हवम्) = हमारी पुकार को (यदि) = यदि वे प्रभु श्(रवत्) = सुनते हैं तो (सहस्त्रिणीभिः ऊतिभिः) = शतश: संरक्षणों के साथ (घ) = निश्चय से (उप आगमत्) = हमें अवश्य प्राप्त होते हैं ।
, हमारी पुकार सुनी तभी जाएगी जब हम भरपूर पुरुषार्थ करेंगे [वाजेभिः] । प्रभु (‘न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवाः') = श्रम के बिना मित्रता के लिए नहीं होते । जब श्रम के उपरान्त हमारे सहायक हो जाते हैं तब वासनाओं के साथ संग्राम में हमारा पराजय नहीं होता, अपितु हम प्रभु के शतशः रक्षणों से सुरक्षित होते हैं ।
भावार्थ -
श्रमशीलता से हम प्रभु प्रार्थना के अधिकारी बनें ।
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