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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 764
ऋषिः - त्रित आप्त्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
प्र꣡ सोमा꣢꣯सो विप꣣श्चि꣢तो꣣ऽपो꣡ न꣢यन्त ऊ꣣र्म꣡यः꣢ । व꣡ना꣢नि महि꣣षा꣡ इ꣢व ॥७६४॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣢ । सो꣡मा꣢꣯सः । वि꣣पश्चि꣡तः꣢ । वि꣣पः । चि꣡तः꣢꣯ । अ꣣पः꣢ । न꣣यन्ते । ऊ꣡र्मयः꣢ । व꣡ना꣢꣯नि । म꣣हिषाः꣢ । इ꣣व ॥७६४॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र सोमासो विपश्चितोऽपो नयन्त ऊर्मयः । वनानि महिषा इव ॥७६४॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । सोमासः । विपश्चितः । विपः । चितः । अपः । नयन्ते । ऊर्मयः । वनानि । महिषाः । इव ॥७६४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 764
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - वे तो देव हैं [As if they are god]
पदार्थ -
इस तृच का ऋषि 'त्रित आप्त्य' है- जिसने 'ज्ञान-कर्म व भक्ति' का विस्तार किया है और प्रभु के पानेवालों में उत्तम है [त्रीन् तनोति, आप्तेषु साधुः ] । इसी 'त्रित आप्त्य' का चित्रण मन्त्र में इस रूप में किया गया है
१. (सोमासः) = ये बड़े सौम्य व विनीत होते हैं । ज्ञान ने इनके अन्दर विनय को जन्म दिया है । २. (विपश्चित:) = ये विशेषरूप से प्रत्येक वस्तु को देखकर चिन्तन करनेवाले होते हैं। इस प्रवृत्ति ने ही तो वस्तुतः उन्हें ज्ञानी बनाया है । और ३. (ऊर्मयः) = ये तरंगोंवाले होते हैं— मूर्त्तिमान् तरंग होते हैं— उत्साह के पुतले । इनमें लोकहित की बड़ी ऊँची-ऊँची भावनाएँ निहित होती हैं। ये निराशावादी न होकर सदा आशावादी और क्रियामय जीवनवाले होते हैं ।
व सौम्यता इन्हें भक्त बनाती है, विपश्चित्ता ज्ञानी और ऊर्मित्व क्रियाशील । इस प्रकार ये ज्ञान, कर्म व भक्ति तीनों का विस्तार करनेवाले होते हैं। तीनों का विस्तार करने से ही ये त्रित हैं । ये ि [क] (अपः प्रणयन्ते) = लोगों को कर्मों की ओर ले-चलते हैं, ये कभी अकर्मण्यता का उपदेश नहीं करते । स्वयं भी अनासक्तिपूर्वक कर्मों में लगे रहते हैं, जिससे उनके उदाहरण से जनता अकर्मण्य न हो जाए। [ख] (वनानि प्रणयन्ते) = प्रजाओं को प्रकाश-किरणों को प्राप्त करते हैं । सदा सत्य -
मार्ग का दर्शन कराने के लिए सन्नद्ध होते हैं । एवं, ज्ञान और कर्म का प्रचार करते हुए ये ('महिषा: इव') = पूजनीय देवों के समान हो जाते हैं। लोग उन्हें ' अतिमानव' [Superman], वीर= [Hero] समझते हैं । उन्हें वे मनुष्य थोड़े ही लगते हैं, वे तो उनके लिए देव-से हो जाते हैं। लोग उन्हें पूजने लगते हैं |
भावार्थ -
हम भी सौम्य, विपश्चित् और उत्साह सम्पन्न बनें ।
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