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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 782
ऋषिः - कश्यपो मारीचः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
वृ꣡ष्ण꣢स्ते꣣ वृ꣢ष्ण्य꣣ꣳ श꣢वो꣣ वृ꣢षा꣣ व꣢नं꣣ वृ꣡षा꣢ सु꣣तः꣢ । स꣡ त्वं वृ꣢꣯ष꣣न्वृ꣡षेद꣢꣯सि ॥७८२॥
स्वर सहित पद पाठवृ꣡ष꣢꣯णः । ते꣣ । वृ꣡ष्ण्य꣢꣯म् । श꣡वः꣢꣯ । वृ꣡षा꣢꣯ । व꣡न꣢꣯म् । वृ꣡षा꣢꣯ । सु꣣तः꣢ । सः । त्वम् । वृ꣣षन् । वृ꣡षा꣢꣯ । इत् । अ꣣सि ॥७८२॥
स्वर रहित मन्त्र
वृष्णस्ते वृष्ण्यꣳ शवो वृषा वनं वृषा सुतः । स त्वं वृषन्वृषेदसि ॥७८२॥
स्वर रहित पद पाठ
वृषणः । ते । वृष्ण्यम् । शवः । वृषा । वनम् । वृषा । सुतः । सः । त्वम् । वृषन् । वृषा । इत् । असि ॥७८२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 782
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - पूर्ति, वृद्धि, प्रवृत्ति
पदार्थ -
हे (वृषन्) = सब कामनाओं को पूर्ण करनेवाले प्रभो ! (वृष्णः) = अत्यन्त शक्तिशाली (ते) = आपका (शवः) = बल (वृष्ण्यम्) = तर्पणशील है—अथवा धर्म की प्रेरणा देनेवाला है। वृषन् शब्द के अर्थ हैं— १. बरसना—सब कामों की वर्षा करनेवाले– सब इच्छाओं के पूरक, २. शक्तिशाली, ३. (धर्मात्मावृषो हि भगवान् धर्मः) । हे प्रभो ! (वनम्) = आपका उपासन (वृषा) = मेरी १. सब कामनाओं को पूरण करनेवाला, २. मुझे शक्तिशाली बनानेवाला तथा ३. मेरी प्रवृत्ति को धार्मिक करनेवाला है, (सुतः) = हृदय में प्रकाशित हुए-हुए आप (वृषा) = मुझे आप्तकाम-सा बना देते हो – मुझे शसक्त कर देते हो और मुझे धर्मप्रवण बनाते हो । हे प्रभो ! (सः त्वम्) = वे आप (इत्) = निश्चय से (वृषा) = सुखवर्धक, शक्तिवर्धक तथा धर्मप्रवर्तक असि हो ।
भावार्थ -
हे प्रभो! आप वृषा हैं— आपकी कृपा से हमारी कामनाओं की पूर्ति हो, हमारी शक्ति की वृद्धि हो और धर्मकार्यों में हमारी प्रवृत्ति हो । इसी उद्देश्य से हम आपके उपासक बनें।
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