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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 891
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
प꣡व꣢मानस्य ते꣣ र꣢सो꣣ द꣢क्षो꣣ वि꣡ रा꣢जति द्यु꣣मा꣢न् । ज्यो꣢ति꣣र्वि꣢श्व꣣꣬ꣳ स्व꣢꣯र्दृ꣣शे꣢ ॥८९१॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मानस्य । ते꣣ । र꣡सः꣢꣯ । द꣡क्षः꣢꣯ । वि । रा꣣जति । द्युमा꣣न् । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । वि꣡श्व꣢꣯म् । स्वः꣢ । दृ꣣शे꣢ ॥८९१॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानस्य ते रसो दक्षो वि राजति द्युमान् । ज्योतिर्विश्वꣳ स्वर्दृशे ॥८९१॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमानस्य । ते । रसः । दक्षः । वि । राजति । द्युमान् । ज्योतिः । विश्वम् । स्वः । दृशे ॥८९१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 891
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - परा व अपरा विद्या
पदार्थ -
(पवमानस्य) = पवित्र करनेवाले (ते) = आपकी प्राप्ति का (रसः) = आनन्द १. (दक्षः) = सब प्रकार की उन्नति growth का कारण है । २. यह रस (द्युमान्) = ज्योतिवाला होकर (विराजति) = विशेषरूप से दीप्त होता है। प्रभु-दर्शन करनेवाले की सर्वांगीण उन्नति तो होती ही है, उसे देदीप्यमान ज्ञान-ज्योति भी प्राप्त होती है। यह (विश्वं ज्योतिः) = पूर्ण प्रकाश (स्वः) = प्रभु के देदीप्यमान रूप के (दृशे) = देखने के लिए होता है अथवा यह (ज्योतिः) = प्रकाश (विश्वम्) = सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को तथा (स्वः) = स्वयं राजमान् प्रभु को दृशे = दिखलाने के लिए होती है। इस ज्ञान में परा व अपरा दोनों विद्याओं का समावेश है |
भावार्थ -
प्रभु-दर्शन मेरी सर्वांगीण उन्नति का कारण बनता है । यह मुझे वह ज्योति प्राप्त कराता है, जिसमें प्रकृति व प्रभु दोनों प्रभासित होते हैं।
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