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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 910
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
अ꣣यं꣡ वां꣢ मित्रावरुणा सु꣣तः꣡ सोम꣢꣯ ऋतावृधा । म꣢꣫मेदि꣣ह꣡ श्रु꣢त꣣ꣳ ह꣡व꣢म् ॥९१०॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣य꣢म् । वा꣣म् । मित्रा । मि । त्रा । वरुणा । सुतः꣢ । सो꣡मः꣢꣯ । ऋ꣣तावृधा । ऋत । वृधा । म꣡म꣢꣯ । इत् । इ꣣ह꣢ । श्रु꣣तम् ह꣡व꣢꣯म् ॥९१०॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं वां मित्रावरुणा सुतः सोम ऋतावृधा । ममेदिह श्रुतꣳ हवम् ॥९१०॥
स्वर रहित पद पाठ
अयम् । वाम् । मित्रा । मि । त्रा । वरुणा । सुतः । सोमः । ऋतावृधा । ऋत । वृधा । मम । इत् । इह । श्रुतम् हवम् ॥९१०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 910
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - पति-पत्नी
पदार्थ -
घर में पति-पत्नी, शरीर में मित्रावरुण के समान ही हैं । आचार्य [ऋ० ७.४३.५] मित्रावरुणौ का अर्थ ‘प्राणोदानौ इव स्त्रीपुरुषौ' करते हैं । यद्यपि ‘प्राणवायु सबसे मुख्य है और घर में पति की प्रधानता है, तथापि ‘उदानः कण्ठदेशे स्यात्' उदानवायु का स्थान कण्ठ है और घर के कण्ठ में पत्नी स्थित है, उसके बिना घर-घर ही नहीं रह जाता ।' प्रभु इन मित्रावरुणौ से - पति-पत्नी से कहते हैं कि
हे (ऋतावृधा) = ऋत=नियमितता के द्वारा अपने जीवन में वृद्धि करनेवाले (मित्रावरुणा) = पतिपत्नि ! (अयं सोमः) = यह सोम-वीर्यशक्ति (वाम्) = तुम्हारे लिए ही (सुतः) = उत्पन्न की गयी है । तुम्हें इसके द्वारा अपने जीवन को बड़ा सुन्दर बनाना है । तुम दोनों (इत्) = निश्चय ही (इह) = अपने इस जीवन में (मम हवम्) = मेरी पुकार को–वेद में दिये गये मेरे आदेश को=(श्रुतम्) = सुनो । अपने जीवन को वेद में दिये गये आदेशों के अनुसार बनाओ ।
मन्त्रार्थ से निम्न बातें स्पष्ट हैं – १. पति प्राण है, पत्नी कण्ठदेश में स्थित उदान के समान है दोनों ही घर के निर्माण के लिए आवश्यक हैं । २. इन्हें अपने जीवन में ऋत= 1 =नियमितता को महत्त्व देना है, उसी से घर की वृद्धि होती है । ३. दोनों ने सोम की रक्षा करते हुए चलना है, उसका अपव्यय नहीं करना । सोम जीवन की अमूल्य वस्तु है । ४. इन्हें वेदानुसार जीवन बिताने का प्रयत्न करना है।
भावार्थ -
पति-पत्नी का जीवन वेद के आदेशों के अनुसार बीते । वेद के मुख्य आदेश तीन हैं – १. गृत्स बनो [गृणाति] = प्रभु-स्तवन करो, २. मद - [माद्यति] सदा प्रसन्न रहो, ३. शौनक [शुन गतौ] गतिशील बनो । प्रस्तुत मन्त्र के ऋषि का नाम 'गृत्समद शौनक' ही है ।