Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 929
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्रः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
1

बो꣢धा꣣ सु꣡ मे꣢ मघव꣣न्वा꣢च꣣मे꣢꣫मां यां ते꣣ व꣡सि꣢ष्ठो꣣ अ꣡र्च꣢ति꣣ प्र꣡श꣢स्तिम् । इ꣣मा꣡ ब्रह्म꣢꣯ सध꣣मा꣡दे꣢ जुषस्व ॥९२९॥

स्वर सहित पद पाठ

बो꣡ध꣢꣯ । सु । मे꣣ । मघवन् । वा꣡च꣢꣯म् । आ । इ꣣मा꣡म् । याम् । ते꣣ । व꣡सि꣢꣯ष्ठः । अ꣡र्च꣢꣯ति । प्र꣡श꣢꣯स्तिम् । प्र । श꣣स्तिम् । इमा꣢ । ब्र꣡ह्म꣢꣯ । स꣣धमा꣡दे꣢ । स꣣ध । मा꣡दे꣢ । जु꣣षस्व ॥९२९॥


स्वर रहित मन्त्र

बोधा सु मे मघवन्वाचमेमां यां ते वसिष्ठो अर्चति प्रशस्तिम् । इमा ब्रह्म सधमादे जुषस्व ॥९२९॥


स्वर रहित पद पाठ

बोध । सु । मे । मघवन् । वाचम् । आ । इमाम् । याम् । ते । वसिष्ठः । अर्चति । प्रशस्तिम् । प्र । शस्तिम् । इमा । ब्रह्म । सधमादे । सध । मादे । जुषस्व ॥९२९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 929
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment

पदार्थ -

प्रभु जीव से कहते हैं – १. हे (मघवन्) = [मघ=मख] हे यज्ञमय जीवनवाले जीव ! तू (इमाम्) = इस (मे) = मेरी (वाचम्) = वेदवाणी को (आ) = पूर्णरूप से (सु) = अच्छी प्रकार (बोध) = समझ । इस वेदवाणी को पूर्णतया सूक्ष्मता से समझने का प्रयत्न कर । २. यह वह वाणी है (याम्) = जिस (प्रशस्तिम्) = प्रभु की प्रशंसापरक वाणी को ते यह तेरा ही भाई (वसिष्ठः) = उत्तम जीवन बितानेवाला (अर्चति) = श्रद्धा और आदर की भावना से पालन [respectfully obeys] करता है । ३. (इमा) = [अनया] इस वेदवाणी के द्वारा तू उस प्रभु की (सधमादे) = [सह माद्यतः यस्मिन्] =साथ आनन्दित होने के स्थान हृदय में = (जुषस्व) = प्रीतिपूर्वक उपासना कर ।

भावार्थ -

प्रभु के तीन निर्देश हैं – १. वेदवाणी को अधिक-से-अधिक समझने का प्रयत्न करो, २. वेद के अनुसार जीवन बनाकर वसिष्ठ बनो, ३. इसके द्वारा हृदय में प्रभु की उपासना करो ।

इस भाष्य को एडिट करें
Top