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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 960
ऋषिः - कश्यपो मारीचः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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ज꣣ज्ञानो꣡ वाच꣢꣯मिष्यसि꣣ प꣡व꣢मान꣣ वि꣡ध꣢र्मणि । क्र꣡न्दन् दे꣣वो꣡ न सूर्यः꣢꣯ ॥९६०॥

स्वर सहित पद पाठ

जज्ञानः꣢ । वा꣡च꣢꣯म् । इ꣣ष्यसि । प꣡व꣢꣯मान । वि꣡ध꣢꣯र्मणि । वि । ध꣣र्मणि । क्र꣡न्द꣢꣯न् । दे꣣वः꣢ । न । सू꣡र्यः꣢꣯ ॥९६०॥


स्वर रहित मन्त्र

जज्ञानो वाचमिष्यसि पवमान विधर्मणि । क्रन्दन् देवो न सूर्यः ॥९६०॥


स्वर रहित पद पाठ

जज्ञानः । वाचम् । इष्यसि । पवमान । विधर्मणि । वि । धर्मणि । क्रन्दन् । देवः । न । सूर्यः ॥९६०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 960
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

(जज्ञान: सूर्यः देवः न) = उदित होते हुए सूर्यदेव के समान, हृदय में प्रकट होते हुए हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले प्रभो! आप (विधर्मणि) = विविध धारणों के निमित्त – सब प्रकार से पालनपोषण करने अथवा विविध धर्मों का ज्ञान देने के लिए (क्रन्दन्)- शब्दों का उच्चारण करते हुए (वाचम्) = इस वेदवाणी को इष्यसि हममें प्रेरित करते हैं । वेदवाणी का उच्चारण करते हुए वे प्रभु हमें हमारे कर्त्तव्य कर्मों की प्रेरणा प्राप्त कराते हैं, जिससे हम उचित प्रकार से अपना धारण कर सकें । 

भावार्थ -

जैसे प्रातःकाल होते ही उदित होता हुआ सूर्य प्रकाश फैलाता है, इसी प्रकार परमात्मा सृष्ट्यारम्भ करते ही ऋषियों के पवित्र अन्त:करण में वेदवाणी को प्रेरित करते हैं ।

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