Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 972
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
त्व꣡ꣳ राजे꣢꣯व सुव्र꣣तो꣡ गिरः꣢꣯ सो꣣मा꣡वि꣢वेशिथ । पु꣣नानो꣡ व꣢ह्ने अद्भुत ॥९७२॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣢म् । रा꣡जा꣢꣯ । इ꣣व । सुव्रतः꣢ । सु꣣ । व्रतः꣢ । गि꣡रः꣢꣯ । सो꣣म । आ꣢ । वि꣣वेशिथ । पुनानः꣢ । व꣣ह्ने । अद्भुत । अत् । भुत ॥९७२॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वꣳ राजेव सुव्रतो गिरः सोमाविवेशिथ । पुनानो वह्ने अद्भुत ॥९७२॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । राजा । इव । सुव्रतः । सु । व्रतः । गिरः । सोम । आ । विवेशिथ । पुनानः । वह्ने । अद्भुत । अत् । भुत ॥९७२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 972
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
Acknowledgment
विषय - सुव्रत राजा की भाँति
पदार्थ -
हे (सोम) = ज्ञानामृतस्वरूप प्रभो ! (त्वम्) = आप (सुव्रतः राजा इव) = जैसे एक उत्तम व्रतोंवाला राजा प्रजा में स्थिर होकर उत्तम नियमन के द्वारा प्रजा के जीवन को सुन्दर बनाता है, उसी प्रकार आप भी (गिरः) = अपने [गृ= स्तुति] स्तोताओं में (आविवेशिथ) प्रवेश करते हो और हे (वने) = सदा सत्पथ की ओर ले-चलनेवाले अग्ने ! [वह प्रापणे] आप अपने भक्तों में स्थिर होकर (पुनान:) = उनके जीवनों को पवित्र करते हो । हृदयस्थ प्रभु अपने स्तोताओं के जीवन को उसी प्रकार नियन्त्रित करते हैं जैसे सुव्रत राजा प्रजा के जीवन को । हे प्रभो! आप (अद्भुत) = आश्चर्यकारक हैं। आपके लिए कोई बात असम्भव थोड़े ही है— आप मेरे जीवन को सुन्दर बनाएँगे ही।
भावार्थ -
जैसे सुव्रत राजा प्रजा को सत्पथ पर ले-चलता है, इसी प्रकार वह आश्चर्यकारक प्रभु भक्तों में प्रविष्ट हो, उनके जीवनों को अद्भुत उन्नतिवाला बना देते हैं ।
इस भाष्य को एडिट करें