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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 9/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शान्ति सूक्त

    शं नो॑ मि॒त्रः शं वरु॑णः॒ शं विष्णुः॒ शं प्र॒जाप॑तिः। शं न॒ इन्द्रो॒ बृह॒स्पतिः॒ शं नो॑ भवत्वर्य॒मा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। नः॒। मि॒त्रः। शम्। वरु॑णः। शम्। विष्णुः॑। शम्। प्र॒जाऽप॑तिः। शम्। नः॒। इन्द्रः॑। बृह॒स्पतिः॑। शम्। नः॒।भ॒व॒तु॒। अ॒र्य॒मा ॥९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं नो मित्रः शं वरुणः शं विष्णुः शं प्रजापतिः। शं न इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो भवत्वर्यमा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। मित्रः। शम्। वरुणः। शम्। विष्णुः। शम्। प्रजाऽपतिः। शम्। नः। इन्द्रः। बृहस्पतिः। शम्। नः।भवतु। अर्यमा ॥९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 9; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    १. (मित्र:) = सबके प्रति स्नेहवाला प्रभु-जो मित्र-ही-मित्र है, (नः शम्) = हमारे लिए शान्ति प्राप्त करानेवाला हो। (वरुण:) = सब पापों का निवारण करनेवाला-श्रेष्ठ प्रभु (शम्) = हमें शान्ति देनेवाला हो। (अर्यमा) = सब शत्रुओं का-काम-क्रोध-लोभ आदि का नियमन करनेवाला प्रभु (न:) = हमारे लिए (शं भवतु) = शान्ति देनेवाला हो। २. (विष्णु:) = [विष् व्याप्ती] सर्वव्यापक प्रभु (शम्) = हमें शान्ति दें और (प्रजापति:) = सब प्रजाओं के रक्षक प्रभु (शम्) = हमें शान्ति देनेवाले हों। (इन्द्रः) = परमैश्वर्यवान् व सर्वशक्तिमान् प्रभु (नः) = हमारे लिए (शम्) = शान्ति दें और (बृहस्पति:) = ब्रह्मणस्पति-ज्ञान के स्वामी प्रभु हमें शान्ति प्राप्त कराएँ।

    भावार्थ - हम प्रभु को 'मित्र-वरुण-विष्णु-प्रजापति-इन्द्र-बृहस्पति व अर्यमा' नामों से स्मरण करते हुए स्वयं 'स्नेह, निष्पापता, उदारता, प्रजारक्षण, जितेन्द्रियता [शक्तिमत्ता] ज्ञान व काम-क्रोध आदि शत्रुओं के नियमन' को धारण करते हुए शान्त जीवनवाले बनें।

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