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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 22

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 22/ मन्त्र 7
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - तक्मनाशनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - तक्मनाशन सूक्त

    तक्म॒न्मूज॑वतो गच्छ॒ बल्हि॑कान्वा परस्त॒राम्। शू॒द्रामि॑च्छ प्रप॒र्व्यं॑ तां त॑क्म॒न्वीव॑ धूनुहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तक्म॑न् । मूज॑ऽवत: । ग॒च्छ॒ । बल्हि॑कान् । वा॒ । प॒र॒:ऽत॒राम् ।शू॒द्राम् । इ॒च्छ॒ । प्र॒ऽफ॒र्व्य᳡म् । तान् । त॒क्म॒न् । विऽइ॑व । धू॒नु॒हि॒ ॥२२.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तक्मन्मूजवतो गच्छ बल्हिकान्वा परस्तराम्। शूद्रामिच्छ प्रपर्व्यं तां तक्मन्वीव धूनुहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तक्मन् । मूजऽवत: । गच्छ । बल्हिकान् । वा । पर:ऽतराम् ।शूद्राम् । इच्छ । प्रऽफर्व्यम् । तान् । तक्मन् । विऽइव । धूनुहि ॥२२.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 22; मन्त्र » 7

    पदार्थ -

    १. हे (तक्मन्) = ज्वर! तू (मूजवत: गच्छ) = मुंज-बासवाले प्रदेशों में जा, (वा) = अथवा (परस्तराम्) = हमसे दूर तू (बल्हिकान्) = बहुत बोलनेवाले, हिंसा की वृत्तिवाले, सदा घर में घुसे रहनेवाले को प्राप्त हो। २. तू उस (शूद्राम्) = अनपढ़, असंस्कृत स्त्री की इच्छा कर जोकि प्रफर्व्यम् = [फर्व गती] हर समय इधर-उधर भटकनेवाली हो [निष्टक्वरी दासीम्-मन्त्र ६]। हे (तक्मन्) = ज्वर! तू (ताम्) = उस स्त्री को ही (वि इव) = खुब ही (धूनहि) = कम्पित कर।

    भावार्थ -

    ज्वर के प्रदेश में अतिशयेन घासवाले प्रदेश हैं। यह बहुत बोलनेवाले, हिंसक, घर में घुसे रहनेवाले लोगों को प्राप्त होता है। यह असंयमी व असंस्कृत स्त्रियों को कम्मित करता है।

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