Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 1

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 1/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - सविता छन्दः - त्रिपदा पिपीलिकमध्या पुरउष्णिक् सूक्तम् - अमृतप्रदाता सूक्त

    स घा॑ नो दे॒वः स॑वि॒ता सा॑विषद॒मृता॑नि॒ भूरि॑। उ॒भे सु॑ष्टु॒ती सु॒गात॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । घ॒ । न॒: । दे॒व: । स॒वि॒ता । सा॒वि॒ष॒त् । अ॒मृता॑नि । भूरि॑ । उ॒भे इति॑ । सु॒स्तु॒ती इति॑ सु॒ऽस्तु॒ती । सु॒ऽगात॑वे ॥१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स घा नो देवः सविता साविषदमृतानि भूरि। उभे सुष्टुती सुगातवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । घ । न: । देव: । सविता । साविषत् । अमृतानि । भूरि । उभे इति । सुस्तुती इति सुऽस्तुती । सुऽगातवे ॥१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    १. (स:) = वह (देव:) = प्रकाशमय (सविता) = प्रेरक प्रभु (घ) = निश्चय से (न:) = हमारे लिए भरि खुब ही (अमृतानि साविषत्) = अमृतत्वों को प्राप्त कराता है-हमें नीरोग जीवनवाला बनाता है। २. (उभे) = दोनों (सुष्टुती) = उत्तम स्तुतियों के-प्रात: व सार्यकालीन स्तुतियों के (सुगातवे) = उत्तम गायन के लिए प्रभु हमें नीरोगता प्रदान करते हैं। ('उभे सुष्टुती सुगातवे') = का यह अर्थ भी सुन्दर है कि दोनों उत्तम स्तुत्य मार्गों से चलने के लिए। हम 'अभ्युदय व निःश्रेयस', 'इहलोक व परलोक', 'शरीर व आत्मा', 'शक्ति व ज्ञान' दोनों का ध्यान करते हुए जीवन में आगे बढ़ें।

    भावार्थ -

    प्रभु हमें खुब ही नीरोग बनाते हैं, जिससे हम प्रात:सायं सम्यक् प्रभुस्तवन कर पाएँ। वस्तुतः प्रभुस्तवन ही नीरोगता का साधन हो जाता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top