Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 15
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - शाला छन्दः - त्र्यवसाना पञ्चपदातिशक्वरी सूक्तम् - शाला सूक्त

    अ॑न्त॒रा द्यां च॑ पृथि॒वीं च॒ यद्व्यच॒स्तेन॒ शालां॒ प्रति॑ गृह्णामि त इ॒माम्। यद॒न्तरि॑क्षं॒ रज॑सो वि॒मानं॒ तत्कृ॑ण्वे॒ऽहमु॒दरं॑ शेव॒धिभ्यः॑। तेन॒ शालां॒ प्रति॑ गृह्णामि॒ तस्मै॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न्त॒रा । द्याम् । च॒ । पृ॒थि॒वीम् । च॒ । यत् । व्यच॑: । तेन॑ । शाला॑म् । प्रति॑ । गृ॒ह्णा॒मि॒ । ते॒ । इ॒माम् । यत् । अ॒न्तरि॑क्षम् । रज॑स: । वि॒ऽमान॑म् । तत् । कृ॒ण्वे॒ । अ॒हम् । उ॒दर॑म् । शे॒व॒धिऽभ्य॑: । तेन॑ । शला॑म् । प्रति॑ । गृ॒ह्णा॒मि॒ । तस्मै॑ ॥३.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्तरा द्यां च पृथिवीं च यद्व्यचस्तेन शालां प्रति गृह्णामि त इमाम्। यदन्तरिक्षं रजसो विमानं तत्कृण्वेऽहमुदरं शेवधिभ्यः। तेन शालां प्रति गृह्णामि तस्मै ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अन्तरा । द्याम् । च । पृथिवीम् । च । यत् । व्यच: । तेन । शालाम् । प्रति । गृह्णामि । ते । इमाम् । यत् । अन्तरिक्षम् । रजस: । विऽमानम् । तत् । कृण्वे । अहम् । उदरम् । शेवधिऽभ्य: । तेन । शलाम् । प्रति । गृह्णामि । तस्मै ॥३.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 15

    पदार्थ -

    १. (द्यां च पृथिवीं च अन्तरा) = धुलोक व पृथिवी लोक के बीच में (यत् व्यचः) = जो विस्तार है, (तेन) = उसी विस्तार के हेतु से (ते) = तेरे लिए (इमां शालाम्) = इस शाला को (प्रति गृह्णमि) = स्वीकार करता हूँ। इस मन्त्रभाग से यह स्पष्ट है कि निवासगृह एकमंजिला ही शोभा देता है, जिसके ऊपर आकाश है और नीचे पृथिवी है। ऐसे घर में सूर्य का प्रकाश सुविधा से पहुँचेगा। यह सूर्यप्रकाश रोगकृमियों को न पनपने देगा। २. (यत्) = जो (रजसः) = इस गृहलोक का [लोका रजांसि उच्यन्ते-नि०४।९] (अन्तरिक्षम्) = मध्यभाग (विमानम्) = विशेष मानपूर्वक निर्मित हुआ है, (तत्) = उसे (अहम्) = मैं (शेवधिभ्यः) = कोशों के लिए-धन के रक्षण के लिए (उदरं कृण्वे) = पेट के समान करता हूँ। इस गृह के मध्य में धन के रक्षण के लिए सुगुप्त स्थान है, (तेन) = उसी कारण से (तस्मै) = उस धन-रक्षण के लिए मैं शाला (प्रतिगृह्णामि) = इस गृह को स्वीकार करता हूँ।

    भावार्थ -

    मकान विशेष मानपूर्वक बनाना चाहिए। इसमें सूर्य का प्रकाश और वायु सम्यक् आ सकें, अत: इसकी छत पर आकाश हो, फर्श के नीचे पृथिवी, अर्थात् सामान्यत: यह एक मंजिला ही हो। मध्य में कोश को सुरक्षित रखने के लिए एक गुप्त तलघर [उदर] हो।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top