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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 59 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 59/ मन्त्र 3
आ सूर्ये॒ न र॒श्मयो॑ ध्रु॒वासो॑ वैश्वान॒रे द॑धिरे॒ऽग्ना वसू॑नि। या पर्व॑ते॒ष्वोष॑धीष्व॒प्सु या मानु॑षे॒ष्वसि॒ तस्य॒ राजा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ । सूर्ये॑ । न । र॒श्मयः॑ । ध्रु॒वासः॑ । वै॒श्वा॒न॒रे । द॒धि॒रे॒ । अ॒ग्ना । वसू॑नि । या । पर्व॑तेषु । ओष॑धीषु । अ॒प्ऽसु । या । मानु॑षेषु । अ॒सि॒ । तस्य॑ । राजा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ सूर्ये न रश्मयो ध्रुवासो वैश्वानरे दधिरेऽग्ना वसूनि। या पर्वतेष्वोषधीष्वप्सु या मानुषेष्वसि तस्य राजा ॥
स्वर रहित पद पाठआ। सूर्ये। न। रश्मयः। ध्रुवासः। वैश्वानरे। दधिरे। अग्ना। वसूनि। या। पर्वतेषु। ओषधीषु। अप्ऽसु। या। मानुषेषु। असि। तस्य। राजा ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 59; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
पदार्थ -
पदार्थ = ( सूर्ये ) = सूर्य में ( न ) = जैसे ( रश्मयः ) = किरणें ( ध्रुवासः ) = स्थिर हैं ऐसे ( वैश्वानरे ) = सबके नेता ( अग्नौ ) = अग्नि में ( वसूनि ) = सब धन ( आ दधिरे ) = सब ओर से अटल रहते हैं ( या पर्वतेषु ) = जो धन पर्वतों में ( अप्सु ) = जलों में ( ओषधीषु ) = ओषधियों में ( या मानुषेषु ) = और जो मनुष्यों में है ( तस्य राजा असि ) = उस सबके आप राजा हैं।
भावार्थ -
भावार्थ = हे परमात्मन् ! जो धन महातेजस्वी अग्नि में, पर्वतों में, ओषधीवर्ग में, समुद्रादि जलों में और मनुष्यों के खजाने आदिक में स्थित है, उस सब धन के आप ही स्वामी हैं। जैसे सूर्य में किरणें अटल होकर रहती हैं ऐसे संसार से सब धन, आप में स्थिर होकर रहते हैं। भगवन् ! आप कंगाल को एक क्षण में धनी और धनी को कंगाल बना सकते हैं ।
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