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ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 51/ मन्त्र 13
ऋषिः - स्वस्त्यात्रेयः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
विश्वे॑ दे॒वा नो॑ अ॒द्या स्व॒स्तये॑ वैश्वान॒रो वसु॑र॒ग्निः स्व॒स्तये॑। दे॒वा अ॑वन्त्वृ॒भवः॑ स्व॒स्तये॑ स्व॒स्ति नो॑ रु॒द्रः पा॒त्वंह॑सः ॥१३॥
स्वर सहित पद पाठविश्वे॑ । दे॒वाः । नः॒ । अ॒द्य । स्व॒स्तये॑ । वै॒श्वा॒न॒रः । वसुः॑ । अ॒ग्निः । स्व॒स्तये॑ । दे॒वाः । अ॒व॒न्तु॒ । ऋ॒भवः॑ । स्व॒स्तये॑ । स्व॒स्ति । नः॒ । रु॒द्रः । पा॒तु॒ । अंह॑सः ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वे देवा नो अद्या स्वस्तये वैश्वानरो वसुरग्निः स्वस्तये। देवा अवन्त्वृभवः स्वस्तये स्वस्ति नो रुद्रः पात्वंहसः ॥१३॥
स्वर रहित पद पाठविश्वे। देवाः। नः। अद्य। स्वस्तये। वैश्वानरः। वसुः। अग्निः। स्वस्तये। देवाः। अवन्तु। ऋभवः। स्वस्तये। स्वस्ति। नः। रुद्रः। पातु। अंहसः ॥१३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 51; मन्त्र » 13
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
पदार्थ -
पदार्थ = ( अद्य ) = आज ( विश्वे देवाः ) = सब दिव्य शक्तिवाले पदार्थ ( न: ) = हमारे ( स्वस्तये ) = सुख के लिए हों ( वैश्वानरः ) = सब मनुष्यों का हितकारी ( वसुः ) = सबका अधिष्ठान ( अग्निः ) = सर्वव्यापक ज्ञानस्वरूप परमात्मा ( नः स्वस्तये ) = हमारे सुख के लिए हो ( देवा: ) = विजयी ( ऋभवः ) = बुद्धिमान् लोग ( स्वस्तये ) = सुख के लिए ( अवन्तु ) = रक्षा करें ( रुद्रः ) = पापियों को दण्ड देकर रुलानेवाला ईश्वर ( नः स्वस्तये ) = हमारे सुख के लिए ( अंहसः पातु ) = पाप कर्म से बचा कर हमारी रक्षा करे।
भावार्थ -
भावार्थ = हे सब मनुष्यों के हितकर्ता ज्ञानस्वरूप सर्वव्यापक प्रभो! जितने `दिव्यशक्तिवाले पदार्थ हैं, वे सब आपकी कृपा से हमें अब सुखदायक हो। सब ज्ञानी लोग हमारे कल्याणकारक हों। जिन ज्ञानी और आपके भक्त महात्माओं के सत्सङ्ग से, हमारा जन्म सफल हो सके और जिनकी प्राप्ति, आपकी कृपादृष्टि के बिना नहीं हो सकती, ऐसे महानुभाव हमारा कल्याण करें भगवन्! पापी लोगों को उनके सुधार के लिए उनके पापों का फल आप दण्ड देते हैं। हम पर कृपा करके उन पापों से हमें बचाएँ और हमारा कल्याण करें ।
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