Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 32

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 32/ मन्त्र 2
    ऋषिः - स्वयम्भु ब्रह्म ऋषिः देवता - परमात्मा देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    3

    सर्वे॑ निमे॒षा ज॑ज्ञिरे वि॒द्युतः॒ पुरु॑षा॒दधि॑।नैन॑मू॒र्द्ध्वं न ति॒र्य्यञ्चं॒ न मध्ये॒ परि॑ जग्रभत्॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर्वे॑। नि॒मे॒षा इति॑ निऽमे॒षाः। ज॒ज्ञि॒रे॒। वि॒द्युत॒ इति॑ वि॒ऽद्युतः॑। पुरु॑षात्। अधि॑। न। ए॒न॒म्। ऊर्द्ध्वम्। न। ति॒र्य्यञ्च॑म्। न। मध्ये॑। परि॑। ज॒ग्र॒भ॒त् ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सर्वे निमेषा जज्ञिरे विद्युतः पुरुषादधि । नैनमूर्ध्वन्न तिर्यञ्चन्न मध्ये परिजग्रभत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सर्वे। निमेषा इति निऽमेषाः। जज्ञिरे। विद्युत इति विऽद्युतः। पुरुषात्। अधि। न। एनम्। ऊर्द्ध्वम्। न। तिर्य्यञ्चम्। न। मध्ये। परि। जग्रभत्॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 32; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    पदार्थ -

    पदार्थ = ( विद्युतः ) = विशेष प्रकाशमान  ( पुरुषात् ) =  सर्वत्र पूर्ण परमात्मा से  ( सर्वे ) = सब  ( निमेषा: ) = उत्पत्ति, स्थिति, प्रलयादि क्रियाएँ  ( अधिजज्ञिरे ) = उत्पन्न होती हैं। कोई भी  ( एनम् ) = इस को  ( न ऊर्ध्वम् ) = न ऊपर से  ( न तिर्य्यञ्चम् ) = न तिरछे  ( न मध्ये ) = न बीच में से  ( परिजग्रभत् ) = सब ओर से ग्रहण कर सकता है । 
     

    भावार्थ -

    भावार्थ = जिस सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान् प्रकाशमान पूर्ण परमात्मा से, क्षण, घटिका, दिन, रात्रि काल के सब अवयव उत्पन्न हुए हैं, और जिससे सारे जगतों की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय, नियमनादि होते हैं, उस जगत्पिता परमात्मा को, कोई भी नीचे, ऊपर, बीच में से वा तिरछे ग्रहण नहीं कर सकता। ऐसे पूर्ण जगदीश परमात्मा को योगाभ्यास, ध्यान, उपासनादि साधनों से ही जिज्ञासु पुरुष जान सकता है, अन्यथा नहीं ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top