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  • यजुर्वेद - अध्याय 40/ मन्त्र 15
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - आत्मा देवता छन्दः - स्वराडुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    वा॒युरनि॑लम॒मृत॒मथे॒दं भस्मा॑न्त॒ꣳ शरी॑रम्।ओ३म् क्रतो॑ स्मर। क्लि॒बे स्म॑र। कृ॒तꣳ स्म॑र॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वा॒युः। अनि॑लम्। अ॒मृत॑म्। अथ॑। इ॒दम्। भस्मा॑न्त॒मिति॒ भस्म॑ऽअन्तम्। शरी॑रम् ॥ ओ३म्। क्रतो॒ इति॒ क्रतो॑। स्म॒र॒। क्लि॒बे। स्म॒र॒। कृ॒तम्। स्म॒र॒ ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वायुरनिलममृतमथेदम्भस्मान्तँ शरीरम् । ओ३म् । क्रतो स्मर । क्लिबे स्मर । कृतँ स्मर ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वायुः। अनिलम्। अमृतम्। अथ। इदम्। भस्मान्तमिति भस्मऽअन्तम्। शरीरम्॥ ओ३म्। क्रतो इति क्रतो। स्मर। क्लिबे। स्मर। कृतम्। स्मर॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 40; मन्त्र » 15
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    पदार्थ -


    पदार्थ = हे  ( क्रतो ) = कर्मकर्ता जीव! शरीर छूटते समय तू  ( ओ३म् ) = इस मुख्य नामवाले परमेश्वर का  ( स्मर ) = स्मरण कर।  ( क्लिबे ) = सामर्थ्य के लिए परमात्मा का ( स्मर ) = स्मरण कर ।  ( कृतम् ) = अपने किये का  ( स्मर ) = स्मरण कर ।  ( वायुः ) = यह प्राण अपानादि वायु  ( अनिलम् ) = कारण रूप वायु जो  ( अमृतम् ) = अविनाशी सूत्रात्मारूप है उस को प्राप्त हो जाएगा ।  ( अथ ) = इस के अनन्तर  ( इदम् शरीरम् ) = यह स्थूल शरीर  ( भस्मान्तम् ) = अन्त में भस्मीभूत हो जायगा । 

    भावार्थ -


    भावार्थ = शरीर को त्यागते समय पुरुषों को चाहिये कि, परमात्मा के अनेक नामों में सब से श्रेष्ठ जो परमात्मा को प्यारा ओ३म् नाम है, उसका वाणी से जाप और मन से उस के अर्थ सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर का चिन्तन करें। यदि आप,अपने जीवन में उस सबसे श्रेष्ठ परमात्मा के ओ३म् नाम का जाप और मन से उस परम प्यारे प्रभु का ध्यान करते रहोगे तो, आपको मरण समय में भी उसका जाप और ध्यान बन सकेगा। इसलिए हम सब को चाहिये कि ओ३म् का जाप और उसके अर्थ परमात्मा का सदा चिन्तन किया करें, तब ही हमारा कल्याण हो सकता है, अन्यथा नहीं । 

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