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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
15
अ꣢ग्न꣣ आ꣡ या꣢हि वी꣣त꣡ये꣢ गृणा꣣नो꣢ ह꣣व्य꣡दा꣢तये । नि꣡ होता꣢꣯ सत्सि ब꣣र्हि꣡षि꣢ ॥१॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ग्ने꣢꣯ । आ । या꣣हि । वीत꣡ये꣢ । गृ꣣णानः꣢ । ह꣣व्य꣡दा꣢तये । ह꣣व्य꣢ । दा꣣तये । नि꣢ । हो꣡ता꣢꣯ । स꣣त्सि । बर्हि꣡षि꣢ ॥१॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये । नि होता सत्सि बर्हिषि ॥१॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्ने । आ । याहि । वीतये । गृणानः । हव्यदातये । हव्य । दातये । नि । होता । सत्सि । बर्हिषि ॥१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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पदार्थ -
शब्दार्थ = ( अग्ने ) = हे स्वप्रकाश सर्वव्यापक सबके नेता परमपूज्य परमात्मन्! ( बर्हिषि ) = आप हमारे ज्ञानयज्ञरूप ध्यान में ( आयाहि ) = प्राप्त होओ । ( गृणान: ) = आप स्तुति किये हुए हैं। ( होता ) = आप ही दाता हैं ( वीतये ) = हमारे हृदय में प्रकाश करने के लिए तथा ( हव्यदातये ) = भक्ति, प्रार्थना, उपासना का फल देने के लिए ( नि सत्सि ) = विराजो ।
भावार्थ -
भावार्थ = परम कृपालु परमात्मा, वेद द्वारा हम अधिकारियों को प्रार्थना करने का प्रकार बताते हैं । हे जगत्पितः ! आप प्रकाशस्वरूप हैं, हमारे हृदय में ज्ञान का प्रकाश कीजिये । आप यज्ञ में विराजते हो, हमारे ज्ञानयज्ञरूप ध्यान में प्राप्त होओ। आपकी वेद और वेदद्रष्टा ऋषि लोग स्तुति करते हैं हमारी स्तुति को भी कृपा करके, श्रवण कर हम पर प्रसन्न होओ। आप ही सब को सब पदार्थ और सुखों के देनेवाले हो ।
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