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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1511
ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
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न꣢ ह्या꣣꣬ꣳ३꣱ग꣢ पु꣣रा꣢ च꣣ न꣢ ज꣣ज्ञे꣢ वी꣣र꣡त꣢र꣣स्त्व꣢त् । न꣡ की꣢ रा꣣या꣢꣫ नैवथा꣣ न꣢ भ꣣न्द꣡ना꣢ ॥१५११॥

स्वर सहित पद पाठ

न । हि । अ꣣ङ्ग꣢ । पु꣣रा꣢ । च꣣ । न꣢ । ज꣣ज्ञे꣢ । वी꣣र꣡त꣢रः । त्वत् । न । किः꣣ । राया꣢ । न । ए꣣व꣡था꣢ । न । भ꣣न्द꣡ना꣢ ॥१५११॥


स्वर रहित मन्त्र

न ह्याꣳ३ग पुरा च न जज्ञे वीरतरस्त्वत् । न की राया नैवथा न भन्दना ॥१५११॥


स्वर रहित पद पाठ

न । हि । अङ्ग । पुरा । च । न । जज्ञे । वीरतरः । त्वत् । न । किः । राया । न । एवथा । न । भन्दना ॥१५११॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1511
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

शब्दार्थ = ( अंग ) = हे प्रिय इन्द्र ! ( पुरा चन ) = पूर्वकाल में तथा वर्त्तमान काल में भी ( न किः राया ) = न तो धन से  ( न एवथा ) = न रक्षा से  ( भन्दना ) = और न स्तुत्यपन से  ( त्वत् वीरतरः ) = आपसे अधिक अत्यन्त वीर पुरुष कोई  ( नहि जज्ञे ) = नहीं उत्पन्न हुआ। 

भावार्थ -

भावार्थ = हे परम प्यारे जगदीश ! आप जैसा अत्यन्त बलवान् और पराक्रमी, न कोई पूर्वकाल में हुआ, न अब कोई है, और न होगा। आप सबकी रक्षा करनेवाले, सब धन के स्वामी और स्तुति के योग्य हैं । जो भद्र पुरुष, आपको ही महाबली, धन के मालिक और सबके रक्षक जानकर, आपकी स्तुति प्रार्थना करते और आपकी वैदिक आज्ञा अनुसार चलते हैं, उनका ही जन्म सफल है।

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