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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1828
ऋषिः - मृगः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
1

न꣡मः꣢ स꣣खि꣡भ्यः꣢ पूर्व꣣स꣢द्भ्यो꣣ न꣡मः꣢ साकन्नि꣣षे꣡भ्यः꣢ । यु꣣ञ्जे꣡ वाच꣢꣯ꣳ श꣣त꣡प꣢दीम् ॥१८२८

स्वर सहित पद पाठ

न꣡मः꣢꣯ । स꣣खि꣡भ्यः꣢ । स꣣ । खि꣡भ्यः꣢꣯ । पू꣣र्वस꣡द्भ्यः꣢ । पू꣣र्व । स꣡द्भ्यः꣢꣯ । न꣡मः꣢꣯ । सा꣣कन्निषे꣡भ्यः꣢ । सा꣣कम् । निषे꣡भ्यः꣢ । यु꣣ञ्जे꣢ । वा꣡च꣢꣯म् । श꣡त꣣प꣢दीम् । श꣣त꣢ । प꣣दीम् ॥१८२८॥


स्वर रहित मन्त्र

नमः सखिभ्यः पूर्वसद्भ्यो नमः साकन्निषेभ्यः । युञ्जे वाचꣳ शतपदीम् ॥१८२८


स्वर रहित पद पाठ

नमः । सखिभ्यः । स । खिभ्यः । पूर्वसद्भ्यः । पूर्व । सद्भ्यः । नमः । साकन्निषेभ्यः । साकम् । निषेभ्यः । युञ्जे । वाचम् । शतपदीम् । शत । पदीम् ॥१८२८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1828
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 6; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
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पदार्थ -

शब्दार्थ = ( पूर्वसद्भ्यः ) = प्रथम से विराजमान हुए  ( सखिभ्यः नमः ) = मित्रों को नमस्कार करता हूँ  ( साकं निषेभ्यः नमः ) = साथ-साथ आकर बैठे मित्रों को नमस्कार करता हूँ  ( शतपदीम् वाचम् युञ्जे ) = सैकड़ों पदोंवाली वाणी का मैं प्रयोग करता हूं । 

भावार्थ -

भावार्थ = सभा समाज वा यज्ञ आदि स्थलों में जब पुरुष जावे, तब हाथ जोड़ कर सब को नमस्कार करे। यदि बोलने का अवसर मिले, तब भी हाथ जोड़, सब मित्रों को नमस्कार करे, पीछे व्याख्यान आदि देवे । कभी भी विद्या वा धन  वा जाति वा कुलीनता आदिकों का अभिमान न करे। इस वेद के पवित्र, मधुर और  सुखदायक उपदेश को माननेवाला निरभिमान उत्तम पुरुष ही सदा सुखी हो सकता है।

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