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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 26
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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नि꣡ त्वा꣢ नक्ष्य विश्पते द्यु꣣म꣡न्तं꣢ धीमहे व꣣य꣢म् । सु꣣वी꣡र꣢मग्न आहुत ॥२६॥
स्वर सहित पद पाठनि꣢ । त्वा꣣ । नक्ष्य । विश्पते । द्युम꣡न्त꣢म् । धी꣣महे । वय꣢म् सु꣣वी꣡र꣢म् । सु꣣ । वी꣡र꣢꣯म् । अ꣣ग्ने । आहुत । आ । हुत ॥२६॥
स्वर रहित मन्त्र
नि त्वा नक्ष्य विश्पते द्युमन्तं धीमहे वयम् । सुवीरमग्न आहुत ॥२६॥
स्वर रहित पद पाठ
नि । त्वा । नक्ष्य । विश्पते । द्युमन्तम् । धीमहे । वयम् सुवीरम् । सु । वीरम् । अग्ने । आहुत । आ । हुत ॥२६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 26
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3;
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पदार्थ -
शब्दार्थ = ( नक्ष्य ) = हे सेवनीय ( विश्पते ) = प्रजापालक ! ( आहुत ) = हे भक्तों से आह्वान किये हुए ( अग्ने ) = परमात्मन्! ( वयम् ) = हम लोग ( सुवीरम् ) = उत्तम भक्त पुरुषोंवाले ( द्युमन्तम् ) = प्रकाश स्वरूप ( त्वा ) = आपका ( नि धीमहे ) = निरन्तर ध्यान करते हैं ।
भावार्थ -
भावार्थ = हे सेवनीय प्रजापालक भक्तवत्सल परमात्मन्! हम आपके सेवक, आप महात्मा सन्तजनों के सेवनीय प्रकाश स्वरूप जगदीश्वर का, सदा अपने हृदय में बड़े प्रेम से ध्यान करते हैं। आप दया के भण्डार अपने भक्तों का सदा कल्याण करते हैं ।
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