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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 16
    ऋषिः - शुनःशेप ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिक्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    पृ॒थि॒व्याः स॒धस्था॑द॒ग्निं पु॑री॒ष्यमङ्गिर॒स्वदाभ॑रा॒ग्निं पु॑री॒ष्यमङ्गिर॒स्वदच्छे॑मो॒ऽग्निं पु॑री॒ष्यमङ्गिर॒स्वद्भ॑रिष्यामः॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पृ॒थि॒व्याः। स॒धस्था॒दिति॑ स॒धऽस्था॑त्। अ॒ग्निम्। पु॒री॒ष्य᳖म्। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। आ। भ॒र॒। अ॒ग्निम्। पु॒री॒ष्य᳖म्। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। अच्छ॑। इ॒मः॒। अ॒ग्निम्। पु॒री॒ष्य᳖म्। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। भ॒रि॒ष्या॒मः॒ ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पृथिव्याः सधस्थादग्निम्पुरीष्यमङ्गिरस्वदाभराग्निम्पुरीष्यमङ्गिरस्वदच्छेमोग्निम्पुरीष्यमङ्गिरस्वद्भरिष्यामः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पृथिव्याः। सधस्थादिति सधऽस्थात्। अग्निम्। पुरीष्यम्। अङ्गिरस्वत्। आ। भर। अग्निम्। पुरीष्यम्। अङ्गिरस्वत्। अच्छ। इमः। अग्निम्। पुरीष्यम्। अङ्गिरस्वत्। भरिष्यामः॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 16
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    भावार्थ -

    हे विद्वान् पुरुष ! तू ( पृथिव्याः ) पृथिवी के ( सघस्थात् ) उस एक स्थान से ही जहां प्रजा बसी हैं ( पुरीष्यम् ) समस्त प्रजाओं को पालन करने में समर्थ, ( अङ्गिरस्वत् ) अग्नि या सूर्य के समान तेजस्वी, ( अग्निम् ) अग्रणी नेता पुरुष को ( आभर ) प्राप्त कर । हम लोग भी ( पुरीष्यम्) पालन करने में समर्थ, समृद्ध ( अङ्गिरस्वत् ) सूर्य या विद्युत् के समान तेजस्वी, ( अग्निम् ) अग्नि के समान शत्रुसंतापक नेता को ( अच्छेम् ) प्राप्त हों । ( पुरीष्यम् अङ्गिरस्वद् भरिष्यामः ) उक्त प्रकार समृद्ध,तेजस्वी नेता को हम भी धारण करेंगे और हम उसको प्राप्त करेंगे, उसका पालन पोषण करेंगे। शत० ६ । ३।२।८-६।३ । ३ ।४ ॥ पृथिवी के जिस स्थान की प्रजा हो ( सधस्थ ) उसी स्थान का उनका शासक नेता होना चाहिये । वे उसको स्वयं चुनें और स्वयं उसको स्थापित करें |

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    प्रजापतिः साध्वा वा ऋषयः । अग्निर्देवता । निचृदार्षी त्रिष्टुप् । धैवतः स्वरः ॥

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