यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 36
नि होता॑ होतृ॒षद॑ने॒ विदा॑नस्त्वे॒षो दी॑दि॒वाँ२ऽअ॑सदत् सु॒दक्षः॑। अद॑ब्धव्रतप्रमति॒र्वसि॑ष्ठः सहस्रम्भ॒रः शुचि॑जिह्वोऽअ॒ग्निः॥३६॥
स्वर सहित पद पाठनि। होता॑। हो॒तृ॒षद॑ने। हो॒तृ॒सद॑न॒ इति॑ होतृ॒सद॑ने। विदा॑नः। त्वे॒षः। दी॒दि॒वानिति॑ दीदि॒ऽवान्। अ॒स॒द॒त्। सु॒दक्ष॒ इति॑ सु॒ऽदक्षः॑। अद॑ब्धव्रतप्रमति॒रित्यद॑ब्धव्रतऽप्रमतिः। वसि॑ष्ठः। स॒ह॒स्र॒म्भ॒र इति॑ सहस्रम्ऽभ॒रः। शुचि॑जिह्व॒ इति॒ शुचि॑ऽजिह्वः। अ॒ग्निः ॥३६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नि होता होतृषदने विदानस्त्वेषो दीदिवाँ ऽअसदत्सुदक्षः । अदब्धव्रतप्रमतिर्वसिष्ठः सहस्रम्भरः शुचिजिह्वोऽअग्निः ॥
स्वर रहित पद पाठ
नि। होता। होतृषदने। होतृसदन इति होतृसदने। विदानः। त्वेषः। दीदिवानिति दीदिऽवान्। असदत्। सुदक्ष इति सुऽदक्षः। अदब्धव्रतप्रमतिरित्यदब्धव्रतऽप्रमतिः। वसिष्ठः। सहस्रम्भर इति सहस्रम्ऽभरः। शुचिजिह्व इति शुचिऽजिह्वः। अग्निः॥३६॥
विषय - होतृ पदपर विद्वान् की नियुक्ति, उसके लक्षण और कर्त्तव्य।
भावार्थ -
( विदानः ) विद्वान् पुरुष, ( त्वेषः ) सूर्य या अग्नि के समान कान्तिमान्, ( दीदिवान् ) तेजस्वी, ( सुदक्षः) उत्तम कार्यकुशल, समर्थ, प्रज्ञावान् होकर ( होता ) आदान प्रतिदान करने में चतुर अधिकारी ( होतृसदने ) 'होता' के पद पर ( नि असदत् ) विराजे । वह ( वसिष्ठः ) सब से अधिक वसुमान्, ऐश्वर्यवान्, सब को बसाने वाला, सबका रक्षक, ( सहस्रम्भरः ) सहस्रों, अपरिमित प्रजाजनों को पालन पोषण करने में समर्थ, ( शुचिजिह्वः ) शुद्ध सत्य वाणी बोलने वाला ( अदब्धव्रत-प्रमति: ) अखिण्डित व्रतों, ब्रह्मचर्य धर्माचरण और नियम, व्यवहारों द्वारा उत्कृष्ट मतिमान् पुरुष भी ( अग्निः ) अभि के समान ही तेजस्वी और ज्ञानवान् 'अग्नि' कहाने योग्य होता है । शत० ६ । ४ । २ । ७ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
गृत्समद ऋषिः । अग्निर्देवता । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
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