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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 45
    ऋषिः - सोमाहुतिर्ऋषिः देवता - पितरो देवताः छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    अपे॑त॒ वीत॒ वि च॑ सर्प॒तातो॒ येऽत्र॒ स्थ पु॑रा॒णा ये च॒ नूत॑नाः। अदा॑द्य॒मोऽव॒सानं॑ पृथि॒व्याऽअक्र॑न्नि॒मं पि॒तरो॑ लो॒कम॑स्मै॥४५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑। इ॒त॒। वि। इ॒त॒। वि। च॒। स॒र्प॒त॒। अतः॑। ये। अत्र॑। स्थ। पु॒रा॒णाः। ये। च॒। नूत॑नाः। अदा॑त्। य॒मः। अ॒व॒सान॒मित्य॑व॒ऽसान॑म्। पृ॒थि॒व्याः। अक्र॑न्। इ॒मम्। पि॒तरः॑। लो॒कम्। अ॒स्मै॒ ॥४५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपेत वीत वि च सर्पतातो ये त्र स्थ पुराणा ये च नूतनाः । अदाद्यमो वसानम्पृथिव्या अक्रन्निमम्पितरो लोकमस्मै ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अप। इत। वि। इत। वि। च। सर्पत। अतः। ये। अत्र। स्थ। पुराणाः। ये। च। नूतनाः। अदात्। यमः। अवसानमित्यवऽसानम्। पृथिव्याः। अक्रन्। इमम्। पितरः। लोकम्। अस्मै॥४५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 45
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    भावार्थ -
    हे ( पितरः ) राष्ट्र के पालक पुरुषो ! आप लोगों में से (अत्र ) इस राज्यपालन के कार्य में ( ये पुराणा: ) जो पुराने, पहले से नियुक्त और ( ये च ) जो ( नूतनाः ) नये नियुक्त हैं । वे ( अप इत ) दूर २ देशों में भी जायें. ( वि इत) विविध देशों में भ्रमण करें, (वि सर्पत ) विविध उपायों से सर्वत्र सर्पण कर गुप्त दूतों का भी काम करें। ( यमः ) सर्वनियन्ता राजा ( पृथिव्या ) पृथिवी में ( अवसानम् ) तुम लोगों को अधिकार और स्थान ( अदात् ) प्रदान करता है । और ( पितरः ) राज्य के पालक लोग (अस्मै ) इस राजा के लिये ( इमं लोकम् ) इस भूलोक को ( अक्रन् ) वश करते हैं। शिक्षा-पक्ष में- ( ये पुराणा ये च नूतना: ) जो पुराने वृद्ध और नये ( पितरः ) पिता लोग हैं वे ( अपेत ) अधर्म से परे रहें । ( वि इत ) धर्म का पालन करें ( अत्र वि सर्पत च ) यहां ही विचरण करें। ( यमः ) नियामक आचार्य ( पृथिव्या अवसानं अदात् ) पृथिवी में तुमको अधिकार पद दे, आप लोग इसके लिये इस सत्य संकल्पवान् पुरुष के लिये ( इम लोकम् चक्रन् ) इस आत्मा का ज्ञान लाभ करावें ॥ शत० ७ । १। १ । २-४ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - लिंगोक्ताः पितरो देवता: । निचृदार्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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