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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 97
    ऋषिः - वरुण ऋषिः देवता - भिषग्वरा देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    ना॒श॒यि॒त्री ब॒लास॒स्यार्श॑सऽउप॒चिता॑मसि। अथो॑ श॒तस्य॒ यक्ष्मा॑णां पाका॒रोर॑सि॒ नाश॑नी॥९७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ना॒श॒यि॒त्री। बलास॑स्य। अर्श॑सः। उ॒प॒चिता॒मित्यु॑प॒ऽचिता॑म्। अ॒सि॒। अथोऽइत्यथो॑। श॒तस्य॑। यक्ष्मा॑णाम्। पा॒का॒रोरिति॑ पाकऽअ॒रोः। अ॒सि॒। नाश॑नी ॥९७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नाशयित्री बलासस्यार्शस उपचितामसि । अथो शतस्य यक्ष्माणाम्पाकारोरसि नाशनी ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नाशयित्री। बलासस्य। अर्शसः। उपचितामित्युपऽचिताम्। असि। अथोऽइत्यथो। शतस्य। यक्ष्माणाम्। पाकारोरिति पाकऽअरोः। असि। नाशनी॥९७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 97
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    भावार्थ -
    हे औषधे ! तू ( बलासस्य ) बल को नाश करनेवाले कफ रोग को ( अर्शसः ) अर्श, बवासीर और ( उपचिताम् ) दोषों के एकत्र होजाने से उठनेवाले गण्ड माला आदि रोगों की ( नाशयित्री असि ) नाश करनेवाली है । ( अद्य ) और इसी प्रकार के ( शतस्य यक्ष्माणाम् ) सैंकड़ों रोगों के और ( पाकारो: ) पकनेवाले फोड़े की भी ( नाशनी असि ) नाश करदेने वाली हो । वीर प्रजा के पक्ष में-- ( बलासस्य ) बलपूर्वक आक्रमक ( अर्शतः ) हिंसाकारी, ( उपचिताम् ) अन्यों के धनों को अन्याय से संग्रह करनेवाले और ( पाकारो: ) परिणाम में पीड़ा देनेवाले और इसी प्रकार ( शतस्य- यक्षमाणाम् ) सैकड़ों गुप्त पीड़ाकारी दुष्टों का नाश करनेहारी हो ।

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