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यजुर्वेद अध्याय - 12
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यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 98
ऋषिः - वरुण ऋषिः
देवता - वैद्या देवताः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
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त्वां ग॑न्ध॒र्वाऽअ॑खनँ॒स्त्वामिन्द्र॒स्त्वां बृह॒स्पतिः॑। त्वामो॑षधे॒ सोमो॒ राजा॑ वि॒द्वान् यक्ष्मा॑दमुच्यत॥९८॥
स्वर सहित पद पाठत्वाम्। ग॒न्ध॒र्वाः। अ॒ख॒न॒न्। त्वाम्। इन्द्रः॑। त्वाम्। बृह॒स्पतिः॑। त्वाम्। ओ॒ष॒धे॒। सोमः॑। राजा॑। वि॒द्वान्। यक्ष्मा॑त्। अ॒मु॒च्य॒त॒ ॥९८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वाङ्गन्धर्वाऽअखनँस्त्वामिन्द्रस्त्वाम्बृहस्पतिः । त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान्यक्ष्मादमुच्यत ॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वाम्। गन्धर्वाः। अखनन्। त्वाम्। इन्द्रः। त्वाम्। बृहस्पतिः। त्वाम्। ओषधे। सोमः। राजा। विद्वान्। यक्ष्मात्। अमुच्यत॥९८॥
भावार्थ -
( स्त्वाम् ) तुझको ( गन्धर्वाः ) गौ वेदवाणी के ज्ञाता और भूमि के पालक ( अखनन् ) खोदते हैं, प्राप्त करते हैं ( त्वां ) तुझको ( इन्द्रः ) इन्द्र, ऐश्वर्यवान् (बृहस्पति ) बड़े राष्ट्र के पालक और ( सोमः राजा ) राजा सोम और ( विद्वान् ) विद्वान् पुरुष भी प्राप्त करता है । ( यक्ष्मात् ) और रोग से ( अमुच्यत ) मुक्त होता है ।
वीर सेना के पक्ष में- ( गन्धर्वाः ) पृथ्वी के पालक, भूपति लोग इन्द्र: ) सेनापति और ( सोमः राजा ) राजा सोम सम्राट् सभी प्रात करते हैं और कष्ट से मुक्त होते हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋष्यादि पूर्ववत् ।
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