यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 26
ऋषिः - सविता ऋषिः
देवता - क्षत्रपतिर्देवता
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
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अषा॑ढासि॒ सह॑माना॒ सह॒स्वारा॑तीः॒ सह॑स्व पृतनाय॒तः। स॒हस्र॑वीर्य्यासि॒ सा मा॑ जिन्व॥२६॥
स्वर सहित पद पाठअषा॑ढा। अ॒सि॒। सह॑माना। सह॑स्व। अरा॑तीः। सह॑स्व। पृ॒त॒ना॒य॒त इति॑ पृतनाऽय॒तः। स॒हस्र॑वी॒र्य्येति॑ स॒हस्र॑ऽवीर्य्या। अ॒सि॒। सा। मा॒। जि॒न्व॒ ॥२६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अषाढासि सहमाना सहस्वारातीः सहस्व पृतनायतः । सहस्रवीर्यासि सा मा जिन्व ॥
स्वर रहित पद पाठ
अषाढा। असि। सहमाना। सहस्व। अरातीः। सहस्व। पृतनायत इति पृतनाऽयतः। सहस्रवीर्य्येति सहस्रऽवीर्य्या। असि। सा। मा। जिन्व॥२६॥
विषय - अषाढा, सेना का वर्णन पक्षान्तर में पत्नी का कर्तव्य ।
भावार्थ -
हे सेने ! तू ( अषाढा असि ) शत्रु से कभी पराजित न होने वाली होने से 'अषाढ़ ।', असह्य पराक्रम वाली है। तू ( सहमाना ) विजय करती हुई (अरातीः) कर न देने वाली शत्रुओं को ( सहस्व ) विजय कर । और ( पृतनायतः ) अपनी सेना बनाकर हम से युद्ध करना चाहने वालों को भी ( सहस्व ) पराजित कर तू ( सहस्रवर्यासि ) सहस्रों वीर पुरुषों के बलों से युक्त है । ( सा ) वह तू ( मा ) मुझ राष्ट्रपति और क्षत्र-पति को ( जिन्व ) हृष्ट पुष्ट कर ॥ शत० ७ । ४ । २ । ३३ । ७० ॥
गृहस्थ में - स्त्री भी शत्रु द्वारा असह्य हो, वह सब विरोधियों को दबा
कर पति को प्रसन्न करे । अध्यात्म में अषाढा=वाक् ।
टिप्पणी -
अतः परं । १२ / १९ । मन्त्रः पठयते काण्व० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - देवाः सविता वा ऋषिः । क्षत्रपतिरषाढा देवता । निचृदनुष्टुप् ॥ गांधारः ॥
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