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  • यजुर्वेद - अध्याय 14/ मन्त्र 3
    ऋषिः - उशना ऋषिः देवता - अश्विनौ देवते छन्दः - विराड्ब्राह्मी बृहती स्वरः - मध्यमः
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    स्वैर्दक्षै॒र्दक्ष॑पिते॒ह सी॑द दे॒वाना॑सु॒म्ने बृ॑ह॒ते रणा॑य। पि॒तेवै॑धि सू॒नव॒ऽआ सु॒शेवा॑ स्वावे॒शा त॒न्वा संवि॑शस्वा॒श्विना॑ध्व॒र्यू सा॑दयतामि॒ह त्वा॑॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वैः। दक्षैः॑। दक्ष॑पि॒तेति॒ दक्ष॑ऽपिता। इ॒ह। सी॒द॒। दे॒वाना॑म्। सु॒म्ने। बृ॒ह॒ते। रणा॑य। पि॒तेवेति॑ पि॒ताऽइ॑व। ए॒धि॒। सू॒नवे॑। आ। सु॒शेवेति॑ सु॒ऽशेवा॑। स्वा॒वे॒शेति॑ सुऽआवे॒शा। तन्वा᳕। सम्। वि॒श॒स्व॒। अ॒श्विना॑। अ॒ध्व॒र्यूऽइत्य॑ध्व॒र्यू। सा॒द॒य॒ता॒म्। इ॒ह। त्वा॒ ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वैर्दक्षैर्दक्षपितेह सीद देवानाँ सुम्ने बृहते रणाय । पितेवैधि सूनवऽआ सुशेवा स्वावेशा तन्वा सँविशस्वाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    स्वैः। दक्षैः। दक्षपितेति दक्षऽपिता। इह। सीद। देवानाम्। सुम्ने। बृहते। रणाय। पितेवेति पिताऽइव। एधि। सूनवे। आ। सुशेवेति सुऽशेवा। स्वावेशेति सुऽआवेशा। तन्वा। सम्। विशस्व। अश्विना। अध्वर्यूऽइत्यध्वर्यू। सादयताम्। इह। त्वा॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 14; मन्त्र » 3
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    भावार्थ -
    राज और पालक पुरुष के कर्त्तव्य । हे बलवान् पुरुष ! हे स्वामिन् राजन् ! तू ( स्वैः दक्षैः ) अपने बलों और ज्ञानों द्वारा और अपने चतुर बलवान् भृत्यों के बल से ( दक्षपिता ) कार्य कुशल पुरुषों का पालक, बल और ज्ञान का पालक, पिता के समान होकर और( बृहते रणाय) बड़े भारी संग्राम के लिये ( देवानां ) विद्वानों और विजयी पुरुषों के बीच में ( सुम्ने ) सुखकारी पद पर या राष्ट्र या गृह में (सीद ) विराजमान हो । ( सूनवे ) पुत्र के लिये ( पिता इव ) जिस प्रकार पिता हितकारी और उसका पालक होता है उसी प्रकार तू भी ( एधि ) हो । है पृथिवी, मातः ! तू भी पालक पिता के समान हो । ( आ सुशेवा) सत्र प्रकार से सुखकारिणी और ( आ सुवेशा ) उत्तम प्रकार से सुख से प्रवेश करने योग्य, सुख से बसने योग्य हो । तू ( तत्वा ) अपने विस्तृत राज्य शक्ति से ( संविशस्व ) प्रवेश कर । ( अश्विना अध्वर्यू ० इत्यादि ) पूर्ववत् ॥ शत० ८ । २ । १ । ६ ॥ पुरुष स्त्री के पक्ष में- हे पुरुष ! तू भृत्यों और अपने बल का पालक होकर विद्वान् पुरुषों को सुख और बड़े भारी रमण योग्य उत्तम कार्य के लिये स्थिर हो । पुत्र के लिये पिता के समान हो । हे स्त्री ! तू पति को सुखकारिणी, सुखपूर्वकं गृहस्थ सुख देने वाली, उत्तम वेश धारण करके अपने ( तवा संविशस्व ) देह से पति के साथ संगत, एक होकर रह ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋष्यादयः पूर्ववत् ॥

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