यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 1
ऋषिः - परमेष्ठी वा कुत्स ऋषिः
देवता - रुद्रो देवता
छन्दः - आर्षी गायत्री
स्वरः - षड्जः
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नम॑स्ते रुद्र म॒न्यव॑ऽउ॒तो त॒ऽइष॑वे॒ नमः॑। बा॒हुभ्या॑मु॒त ते॒ नमः॑॥१॥
स्वर सहित पद पाठनमः॑। ते॒। रु॒द्र॒। म॒न्यवे॑। उ॒तोऽइत्यु॒तो। ते॒। इष॑वे। नमः॑। बा॒हु॒भ्या॒मिति॑ बा॒हुऽभ्या॑म्। उ॒त। ते॒। नमः॑ ॥१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नमस्ते रुद्र मन्यवऽउतो तऽइषवे नमः । बाहुभ्यामुत ते नमः ॥
स्वर रहित पद पाठ
नमः। ते। रुद्र। मन्यवे। उतोऽइत्युतो। ते। इषवे। नमः। बाहुभ्यामिति बाहुऽभ्याम्। उत। ते। नमः॥१॥
विषय - राजा रुद्र के मन्यु, इषु और बाहुओं को 'नमः' इसकी स्पष्ट व्याख्या ।
भावार्थ -
हे (रुद्र) दुष्टों के रुलाने वाले राजन् ! ( मन्यवे ) तेरे मन्यु को अर्थात् मन्युस्वरूप तेरे अधीन रहने वाले तीक्ष्ण वीर पुरुषों को ( नमः ) नमस्कार या उनका भोग्य अन्न और वज्र शस्त्र और वीर्योचित कर्म या वीर्य, शक्ति प्राप्त हो । ( उतो ) और ( ते ) तेरे (इषवे) इषु, शत्रुओं के मारने वाले बाण अर्थात् बाणधारी सैन्य को ( नमः ) अन्न प्राप्त हो । ( ते बांहुभ्याम् ) तेरी बाहुओं को बाहु रूप सेना के दस्तों को ( नमः ) शत्रु को नमाने वाला वीर्य प्राप्त हो ।
टिप्पणी -
अथातः शतरुद्रियो होम: ॥ १-३ कुत्स ऋषिः ।द ० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १-६६ ) देवाः प्रजापतिश्च ऋषयः । (१-१६ ) रुद्रो देवता । आर्षी गायत्री । षड्जः ॥
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