यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 90
ऋषिः - वामदेव ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - विराडार्षी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
1
व॒यं नाम॒ प्रं ब्र॑वामा घृ॒तस्या॒स्मिन् य॒ज्ञे धा॑रयामा॒ नमो॑भिः। उप॑ ब्रह्मा॒ शृ॑णवच्छ॒स्यमा॑नं॒ चतुः॑शृङ्गोऽवमीद् गौ॒रऽए॒तत्॥९०॥
स्वर सहित पद पाठव॒यम्। नाम॑। प्र। ब्र॒वा॒म॒। घृ॒तस्य॑। अ॒स्मिन्। य॒ज्ञे। धा॒र॒या॒म॒। नमो॑भिरिति॒ नमः॑ऽभिः। उप॑। ब्र॒ह्मा। शृ॒ण॒व॒त्। श॒स्यमा॑नम्। चतुः॑शृङ्ग॒ इति॒ चतुः॑ऽशृङ्गः। अ॒व॒मी॒त्। गौ॒रः। ए॒तत् ॥९० ॥
स्वर रहित मन्त्र
वयन्नाम प्र ब्रवामा घृतस्यास्मिन्यज्ञे धारयामा नमोभिः । उप ब्रह्मा शृणवच्छस्यमानञ्चतुः शृङ्गोवमीद्गौरऽएतत् ॥
स्वर रहित पद पाठ
वयम्। नाम। प्र। ब्रवाम। घृतस्य। अस्मिन्। यज्ञे। धारयाम। नमोभिरिति नमःऽभिः। उप। ब्रह्मा। शृणवत्। शस्यमानम्। चतुःशृङ्ग इति चतुःऽशृङ्गः। अवमीत्। गौरः। एतत्॥९०॥
विषय - चतुरंग बल से युक्त सेनापति चतुर्वेदवित् विद्वान् ।
भावार्थ -
राजा के पक्ष में- ( वयम् ) हम लोग ( धृतस्य ) बल, ऐश्वर्य से प्रजा का सेवन करने हारे और स्वयं तेजस्वी राजा के ( नाम ) शत्रुओं को नमाने वाले बल या दण्ड विधान, शासन का ( प्र ब्रवाम ) अच्छी प्रकार वर्णन या उपदेश करें। और ( अस्मिन् यज्ञे ) इस प्रजापालन एवं राज्य कार्य में हम लोग उस शासन को ( नमोभिः ) दण्ड आदि शत्रुओं को दबाने वाले विविध साधनों से ( धारयाम ) धारण करें और पुष्ट करें। ( ब्रह्मा ) बह्मा अर्थात् वेद का जानने वाला चतुर्वेदवित् विद्वान् ( शस्यमानम् ) विधान किये जाते हुए इसको ( उपशृणवत् ) स्वयं श्रवण करें। और ( चतु:शृङ्गः ) पदाति, रथ, अश्व और हस्ति आदि चारों प्रकार के हिंसासाधनों से सम्पन्न ( गौरः ) गो=पृथिवी में रमण करने द्वारा राजा ( एतत् ) उस दण्ड-विधान को ( अवमीत् ) विद्वानों से श्रवण करके पुनः प्रजा को आज्ञा रूप से कहे।
ज्ञान के पक्ष में -- ब्रह्मा, वेदवित् विद्वान् चार वेदों रूप चार शृङ्गवाला और ( गौर: ) वेद वाणी में रमणशील होकर वमन अर्थात् वेदों का उपदेश करे और लोग श्रवण करें ( घृतस्य ) ज्ञान के परिपक्व स्वरूप का हम प्रवचन करें और ( यज्ञे ) श्रेष्ठ कर्म या उपास्य परमेश्वर में उसको ( नमोभिः ) आदर वचनों सहित ( धारयाम ) प्रयोग करें।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वामदेव ऋषिः । अग्निर्देवता । विराडार्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
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