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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 22
    ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    धा॒नाना॑ रू॒पं कुव॑लं परीवा॒पस्य॑ गो॒धूमाः॑। सक्तू॑ना रू॒पं बदर॑मुप॒वाकाः॑। कर॒म्भस्य॑॥२२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धा॒नाना॑म्। रू॒पम्। कुव॑लम्। प॒री॒वा॒पस्य॑। प॒री॒वा॒पस्येति॑ परिऽवा॒पस्य॑। गो॒धूमाः॑। सक्तू॑नाम्। रू॒पम्। बद॑रम्। उ॒प॒वाका॒ इत्यु॑प॒ऽवाकाः॑। क॒र॒म्भस्य॑ ॥२२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धानानाँ रूपङ्कुवलम्परीवापस्य गोधूमाः । सक्तूनाँ रूपम्बदरमुपवाकाः करम्भस्य ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    धानानाम्। रूपम्। कुवलम्। परीवापस्य। परीवापस्येति परिऽवापस्य। गोधूमाः। सक्तूनाम्। रूपम्। बदरम्। उपवाका इत्युपऽवाकाः। करम्भस्य॥२२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 22
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    भावार्थ -
    ( धानानां रूपं कुबलम् ) धान, लाजाओं का रूप 'कुवल' ''बेर' का फल है अर्थात् जिस प्रकार कोमल बेर को बकरी आदि पशु अनायास खा जाते हैं उसी प्रकार राष्ट्र के पोषक गौ आदि पशु भी अनायास दूसरों के उपयोगी हो जाते हैं । (गोधूमाः परीवापस्य रूपम् ) गोधूम गेहूँ परिवाक का उत्तम रूप है । अर्थात् गेहूँ अन्न कृषि का उत्तम फल है । ( सक्तूनां रूपं बदरम् ) सक्तुओं का उत्तम रूप 'बदर' है, सक्तु अर्थात् राष्ट्र में संघ बनाकर रहना शत्रु के लिये 'बेर' के समान होता है अर्थात् जैसे बेर कांटों से घिरा होता है उसी प्रकार संघ में रहने से श एक दम आक्रमण कर राज्य नहीं छीन सकता । ( उपवाका : करम्भस्य रूपम् ) 'करम्भ' दही से मिले सत्त का रूप 'उपवाक' अर्थात् 'यव' है। 'करम्भ' अर्थात् क्रिया सामर्थ्य वीर्यं से युक्त प्रजागण ( उपवाकाः = उपपाकाः ) शत्रु के समीप आने पर उसके दूग्ध करने में समर्थ होते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - यज्ञः । अनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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