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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 72
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - भुरिक् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    सोमो॒ राजा॒मृत॑ꣳ सु॒तऽऋ॒जी॒षेणा॑जहान्त्मृ॒त्युम्। ऋ॒तेन॑ स॒त्यमि॑न्द्रि॒यं वि॒पान॑ꣳ शु॒क्रमन्ध॑स॒ऽइन्द्र॑स्येन्द्रि॒यमि॒दं पयो॒ऽमृतं॒ मधु॑॥७२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमः॑ राजा॑। अ॒मृत॑म्। सु॒तः। ऋ॒जी॒षेण॑। अ॒ज॒हा॒त्। मृ॒त्युम्। ऋ॒तेन॑। स॒त्यम्। इ॒न्द्रि॒यम्। वि॒पान॒मिति॑ वि॒ऽपान॑म्। शु॒क्रम्। अन्ध॑सः। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒यम्। इ॒दम्। पयः॑। अ॒मृत॑म्। मधु॑ ॥७२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमो राजामृतँ सुत ऋजीषेणाजहान्मृत्युम् । ऋतेन सत्यमिन्द्रियँविपानँ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयो मृतम्मधु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सोमः राजा। अमृतम्। सुतः। ऋजीषेण। अजहात्। मृत्युम्। ऋतेन। सत्यम्। इन्द्रियम्। विपानमिति विऽपानम्। शुक्रम्। अन्धसः। इन्द्रस्य। इन्द्रियम्। इदम्। पयः। अमृतम्। मधु॥७२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 72
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    भावार्थ -
    (सोमः) सर्वप्रेरक ( राजा ) राजा, सबसे ऊपर विराजमान पुरुष भी (सुतः) राजपद पर अभिषिक्त होकर (अमृतम् ) अमृत, अखण्ड राज्य को पाता है । वह (ऋजीषेण) सरल, धर्मानुकूल आचरण से, अथवा संगृहीत प्रभूत धनकोष और सेनाबल द्वारा ( मृत्युम् ) प्रजा और राजा पर आने वाले मृत्यु अर्थात् प्राणसंकट को ( अजहात् ) दूर करता है । (ऋतेन), सत्य, वेदज्ञान से (सत्यम् ) सच्चे (वि- पानम् ) विविध प्रकार से राष्ट्र की रक्षा करने में समर्थ (इन्द्रियम् ) राजोचित ऐश्वर्य, बल और (अन्धसः) अन्न के ( शुक्रम) शुद्ध, सारभूत वीर्य और (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् सेनापति के ( इन्द्रियम् ) ऐश्वर्य और (इदम् ) इस प्रत्यक्ष ( पयः ) पुष्टिकारक अन्न, ( अमृतम् ) दीर्घजीवन या उत्तम जल और (मधु ) मधुर पदार्थ को प्राप्त करता है । अध्यात्म में- सोम राजा ज्ञानी पुरुष योग आदि द्वारा ज्ञानसम्पन्न शुद्ध-बुद्ध होकर अमृतपद लाभ करता है और मृत्यु को पार कर जाता है । अन्न से जिस प्रकार वीर्य प्राप्त करता है उसी प्रकार ऋत, सत्य के बल पर सच्चे आत्मिक बल को और इन्द्र ऐश्वर्यवान् आत्मा के इन्द्रिय, ऐश्वर्यमय स्वरूप को साक्षात् दूध के समान स्वच्छ अमृत के समान अविनाशी मधु के समान मधुर आनन्द को प्राप्त करता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ७२–७९—अश्विसरस्वतीन्द्रा ऋषयः । ग्रहाः, सोमश्च । भुरिक् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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