यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 15
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - वायुर्देवता
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
1
यदि॒ दिवा॒ यदि॒ नक्त॒मेना॑सि चकृ॒मा व॒यम्। वा॒युर्मा॒ तस्मा॒देन॑सो॒ विश्वा॑न्मुञ्च॒त्वꣳह॑सः॥१५॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑। दिवा॑। यदि॑। नक्त॑म्। एना॑सि। च॒कृ॒म। व॒यम्। वा॒युः। मा॒। तस्मा॑त्। एन॑सः। विश्वा॑त्। मु॒ञ्च॒तु॒। अꣳह॑सः ॥१५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि दिवा यदि नक्तमेनाँसि चकृमा वयम् । वायुर्मा तस्मादेनसो विश्वान्मुञ्चत्वँहसः ॥
स्वर रहित पद पाठ
यदि। दिवा। यदि। नक्तम्। एनासि। चकृम। वयम्। वायुः। मा। तस्मात्। एनसः। विश्वात्। मुञ्चतु। अꣳहसः॥१५॥
विषय - विद्वानों का प्रजाजनों को असत्कर्मों और बन्धनों से छुड़ाना।
भावार्थ -
(यदि) चाहे (दिवा) दिन के समय ( यदि नक्तम् ) चाहे रात्रिकाल में ( वयम् ) हम लोग (एनांसि ) अपराध और पाप (चक्रम) करें तो भी (वायुः) वायु बल व्यापक, अन्तर्यामी परमेश्वर ज्ञानी आप्त पुरुष एवं राजा ( तस्मात् विश्वात् एनसः ) उस सब अपराध से और ( विश्वात् अंहसः) सब प्रकार के पाप से भी (मा मुञ्चतु) मुझे मुक्त करे । शत० १२ । ९ । २ । २ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वायुर्देवता । निचृद् अनुष्टुप् । गांधारः ॥
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