यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 31
अध्व॑र्यो॒ऽअद्रि॑भिः सु॒तꣳ सोमं॑ प॒वित्र॒ऽआ न॑य। पु॒ना॒हीन्द्रा॑य॒ पात॑वे॥३१॥
स्वर सहित पद पाठअध्व॑र्यो॒ऽइत्यध्व॑र्यो। अद्रि॑भि॒रित्यद्रि॑ऽभिः। सु॒तम्। सोम॑म्। प॒वित्रे॑। आ। न॒य॒। पु॒नी॒हि। इन्द्रा॑य। पात॑वे ॥३१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अध्वर्या अद्रिभिः सुतँ सोमम्पवित्रऽआनय । पुनीहीन्द्राय पातवे ॥
स्वर रहित पद पाठ
अध्वर्योऽइत्यध्वर्यो। अद्रिभिरित्यद्रिऽभिः। सुतम्। सोमम्। पवित्रे। आ। नय। पुनीहि। इन्द्राय। पातवे॥३१॥
विषय - राजा का अभ्युक्षण, दीक्षा ।
भावार्थ -
हे (अध्वर्यो ) अध्वर्यो विद्वन् ! यज्ञवत् अखण्ड राज्य के संयोजक महामात्य तू (अद्रिभिः) अजेय शस्त्रधारियों से ( सुतम् ) अभिषिक्त हुए ( सोमम् ) राजा को (पवित्रे) पवित्र राज सिंहासन पर ( आ नय) प्राप्त करा और (इन्द्राय) ऐश्वर्य युक्त, राष्ट्र के (पातवे ) पालन करने के लिये ( पुनीहि ) उसके आत्मा, मन इन्द्रियों को पवित्र कर ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - इन्द्रो देवता । गायत्री । षड्जः ॥
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